Monday, November 13, 2017

इंटरनेट भी है और डाटा भी, पर सुरक्षा का क्या?

भारत में एक तरफ जहां इंटरनेट यूजर्स की संख्या में जबर्दस्त बढ़ोतरी हो रही है, वहीं उसी रफ्तार में साइबर क्राइम भी बढ़ता जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने डिजिटल इंडिया का नारा देकर गांव-गांव तक इंटरनेट की उपलब्धता सुनिश्चित कराने का वादा किया है। सरकार इस दिशा में काम कर भी रही है। पर क्या सिर्फ इंटरनेट की उपलब्धता दे देना ही काफी है। अभी इस बात पर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है कि आने वाले समय में इंटरनेट की सुगमता हमें किस तरह की परेशानियों की तरफ धकेलने वाली है। इस वक्त हमारा पूरा जोर इंटरनेट यूजर्स को बढ़ाने और हर एक सरकारी व्यवस्था को डिजिटलाइज करने पर लगा है। साथ ही साथ मंथन करने का वक्त है कि वर्चुअल वर्ल्ड में हमारा डाटा कितना सुरक्षित है। हमारे भारत में मजबूत डाटा संरक्षण कानून की जरूरत लंबे वक्त से महसूस की जा रही है। पर अफसोस इस बात का है कि इतना लंबा वक्त गुजर जाने पर भी हम डाटा संरक्षण कानून को अब तक मूर्त रूप नहीं दे सके हैं।
अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, चीन, जर्मनी, आॅस्ट्रेलिया सहित करीब चालीस देशों में मजबूत डाटा संरक्षण कानून मौजूद है। पड़ोसी देश चीन में तो इतना मजबूत कानून है कि वहां ट्वीटर जैसा वैश्विक सोशल मीडिया प्लटेफॉर्म तक प्रतिबंधित है। हाल ही में आॅस्ट्रेलिया ने भी अपने कानून को और भी मजबूती प्रदान करते हुए कई कड़े कदम उठाए हैं। इसमें सबसे बड़ा कदम बच्चों द्वारा सोशल मीडिया के उपयोग को लेकर है। 14 साल से कम उम्र के बच्चों के फेसबुक और ट्वीटर इस्तेमाल को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया है। वहां की एक कमेटी ने सरकार को रिपोर्ट सौंपी थी जिसमें बाल यौन शोषण को रोकने के लिए ऐसे प्रतिबंध को जरूरी बताया गया था। आॅस्ट्रेलिया के पास अपना मजबूत कानून था, जिसके कारण उसे इसे लागू करने में जरा भी देर नहीं लगी।
भारत में इंटरनेट को लेकर स्थिति आश्चर्यजनक रूप से विपरीत है। एक तरफ यहां की सरकार इंटरनेट के इस्तेमाल पर पूरा जोर दे रही है। वहीं दूसरी तरफ इस इंटरनेट का उपयोग और उससे होने वाली विसंगतियों की तरफ पर्याप्त ध्यान केंद्रित नहीं कर रही है। डिजिटल इंडिया के इस युग में इंटरनेट पर आपका डाटा कितना असुरक्षित है यह बताने की जरूरत नहीं है। अभी हाल ही में आधार कार्ड की अनिवार्यता को लेकर जिस तरह वाद विवाद शुरू हुआ उसमें सरकार की तैयारियों की पोल खुल गई। यह बहस अभी थमी नहीं है। आने वाले समय में अभी और भी बहस होगी।
भारत में इस वक्त सबसे बड़ा सवाल इंटरनेट पर मौजूद हमारे व्यक्तिगत डाटा के संरक्षण और सुरक्षा को लेकर है। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि मौजूद समय में भारत में डाटा संरक्षण को लेकर कोई कानून ही नहीं है। न ही कोई संस्था है जो डाटा की गोपनीयता की सुरक्षा प्रदान करती हो। हां इतना जरूर है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 43-ए के तहत डाटा संरक्षण के लिए उचित दिशा निर्देश दिए गए हैं। पर ये निर्देश सिर्फ कागजों तक ही सीमित माने जाते हैं। जानकारों का कहना है कि जबतक ठोस डाटा संरक्षण कानून का गठन नहीं होता ये निर्देश अप्रभावी और अपर्याप्त हैं।
भारत में इस वक्त इंटरनेट को लेकर सर्वाधित दुरुपयोग हो रहे हैं। यहां तक कि जातीय हिंसा फैलाने और आतंकी घटनाओं तक में इंटरनेट का उपयोग किया जा रहा है। जातीय उन्माद फैलाने में इंटरनेट का उपयोग इतना अधिक हो रहा है कि आए दिन किसी न किसी राज्य में सरकार को इंटरनेट सेवा कुछ समय या दिन के लिए बंद करनी पड़ रही है। हाल के महीनों में जम्मू कश्मीर, हरियाणा, बिहार और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने कई मौकों पर इंटरनेट सेवा कई दिनों तक बाधित रखी। सरकार का मानना था कि अगर इंटरनेट सेवा बंद नहीं की जाती तो हिंसा और अधिक बढ़ी और कंट्रोल से बाहर हो जाती।
यह अलार्मिंग सिचुएशन है। छोटी सी छोटी घटना इंटरनेट की सुलभता के कारण कितनी हिंसात्मक हो जा रही है यह मंथन की बात है। इंटरनेट के दुरुपयोगी पकड़े जाने पर भी आसानी से कानूनी शिकंजे से छूट जाते हैं। सोशल मीडिया के जरिए इस तरह का दुरुपयोग हाल के दिनों में काफी बढ़ा है। सबसे अधिक प्रभावित महिला और बच्चे हो रहे हैं। बिना कानूनी संरक्षण के इस तरह के दुरुपयोग पर पूरी तरह लगाम नहीं लगाया जा सकता है। भारत उन देशों की कतार में है जहां आने वाले समय में इंटरनेट ही सबकुछ होगा। हर काम का डिजिटलाइजेशन हो रहा है। सरकारी तंत्र पूरी तरह कंप्यूटर और इंटरनेट पर आधारित हो गया है। ऐसे में आधार और बायोमेट्रिक्स सुविधाओं पर बहस लाजिमी है। सुप्रीम कोर्ट भी सरकार को इन मुद्दों पर कठघरे में खड़ा कर चुकी है। कई बार सवाल पूछे जा चुके हैं। 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल इंडिया का जो सपना देखा है वह निश्चित रूप से भारत को कई दम आगे ले जाने वाला होगा। आने वाले समय में इससे बेहतर कुछ दूसरा नहीं हो सकता है। पर यह सपना सार्थक तब होगा जब हम आम लोगों में यह विश्वास दिलाने में कामयाब होंगे कि इंटरनेट पर आप सुरक्षित हैं। आपका डाटा सुरक्षित है। आपका निजी जीवन सुरक्षित है। यह विश्वास तभी कायम हो सकता है जब भारत का अपना एक ठोस डाटा संरक्षण कानून वजूद में हो।
चलते-चलते
भारत सरकार ने डाटा संरक्षण कानून के लिए इसी साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज बीएन कृष्णा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था। यह कमेटी भारत में डाटा संरक्षण के लिए उपयोगी कानून पर मंथन कर ही है। उम्मीद की जा रही है अगले महीने तक कमेटी अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को सौंप देगी। कमेटी अपनी रिपोर्ट में क्या कहेगी यह तो आने वाला समय बताएगा, फिलहाल उम्मीद की जानी चाहिए कि कमेटी की रिपोर्ट पर सरकार तत्काल कार्रवाई करते हुए एक उपयोगी डाटा संरक्षण कानून को लागू करेगी।

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