Monday, September 11, 2017

संत और बाबा परंपरा के अंतर को समझना होगा


भारतीय इतिहास के कई स्वर्णिम युगों में सनातम धर्म की परंपराओं ने एक अलग मान और सम्मान का काम किया है। युगों-युगों से इस सनातनी परंपरा ने हमारे हिन्दु धर्म को मजबूत और सुसंस्कृत बनाने का काम किया है। जब आदि शंकराचार्य ने पूरे भारतवर्ष में अखाड़ा परंपरा की नींव डाली थी तो उस वक्त शायद किसी ने परिकल्पना भी नहीं की होगी कि इस अखाड़ा परंपरा के समकक्ष डेरा परंपरा शुरू हो जाएगी। और एक वक्त ऐसा आएगा कि इन्हीं डेरा परंपराओं के स्वयंभू बाबा सनातन धर्म के साधू-संतों और सन्यासियों को भी अपने कुकर्मों और अधर्मों से अपवित्र करना शुरू कर देंगे। मंथन का वक्त है कि हम अपने सनातन धर्मों को छोड़कर क्यों ऐसे डेरों और बाबाओं की तरफ आकर्षित हो रहे हैं।
इस बीच स्वयंभू बाबाओं और सनातन धर्म की परंपराओं के बीच की लकीर को स्पष्ट करते हुए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने बड़ा कदम उठाया है। परिषद ने रविवार को धर्म नगरी इलाहाबाद में बड़ी बैठक करते हुए देश भर के 14 फर्जी बाबाओं की लिस्ट जारी की है। अखाड़ा परिषद के लिए भी इस लिस्ट को जारी करना बड़ी चुनौती होगी। पर अखाड़ा परिषद ने साधूवाद की इन्होंने देर से ही सही एक सार्थक कदम उठाया है। इलाहाबाद में अखाड़ा कार्यकारिणी की बैठक के बाद जारी इस लिस्ट में आसाराम उर्फ आशुमल शिरमानी, राधे मां उर्फ सुखविंदर कौर, सचिदानंद गिरी उर्फ सचिन दत्ता, गुरमीत राम रहीम, ओम बाबा उर्फ विवेकानंद झा, निर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंह, इच्छाधारी भीमानंद उर्फ शिवमूर्ति द्विवेदी, स्वामी असीमानंद, ऊं नम: शिवाय बाबा, नारायण सार्इं, रामपाल, खुशी मुनि, बृहस्पति गिरि और मलकान गिरि समेत कुल 14 नाम शामिल हैं। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के इस साहसिक फैसले ने निश्चित तौर पर भारत में धर्म के नाम पर चल रहे आडंबर, झूठ और फरेब पर एक बड़ी और उद्देश्यपूर्ण बहस को जन्म दे दिया है। लंबे समय से धर्म के इस महाजाल पर बहस होती आ रही है, लेकिन शायद यह पहली बार है कि इतना बड़ा और सार्थक फैसला लिया गया है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद में देश के सभी 13 अखाड़े शामिल हैं। 
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी

लिस्ट जारी करने के बाद अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी ने कहा है कि काफी दिनों से फर्जी बाबाओं के द्वारा धर्म के नाम पर दहशत फैलाया जा रहा था। इन बाबाओं द्वारा बलात्कार, शोषण और देश की भोली भाली जनता को ठगने की खबरें आती रही हैं। कई बाबाओं के मामले में तो अदालत भी फैसला दे चुकी है। इन लोगों के कारण ही हिन्दू धर्म, संत समाज और सनातन परंपरा की बदनाम होती है। इसलिए परिषद ने ये फैसला लिया है कि वह स्वयं फर्जी बाबाओं की लिस्ट जारी कर दें, ताकि जनता उनसे सचेत रहें। उन्होंने स्पष्ट किया है कि यह कोई अंतिम सूची नहीं है। भविष्य में भी ऐसी सूचियां आएंगी जिससे आम जनता भी सचेत रहे।
अखाड़ा परिषद ने तो स्पष्ट तौर पर फर्जी बाबाओं के नाम उजागर कर दिए हैं। हो सकता है बहुत से लोगों को इस लिस्ट पर आपत्ति भी हो। इसकी भी आशंका है कि इन फर्जी बाबाओं के समर्थक किसी हिंसक घटना को अंजाम देने पर उतारू हो जाएं। पर मंथन करने की जरूरत है कि धर्म के नाम पर ऐसी ठेकेदारी करने वालों पर हम आंख मूंद कर कैसे विश्वास कर लेते हैं। कैसे हमारी ही बदौलत ये बाबा अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच जाते हैं और हमारी मासूमियत का फायदा उठाते हैं। ग्लैमरस लाइफ स्टाइल, देश विरोधी हरकतों को करते हुए कैसे ये स्वयंभू भगवान के रूप में हमारे सामने आते हैं और हम भी आंखों पर धर्म का काला चश्मा लगाए इन पर अंध भक्ति प्रदर्शित करने लगते हैं।
जगद्गुरु पंचानंद गिरी
जूना अखाड़ा के जगद्गुरु पंचानंद गिरी कहते हैं धर्म-आस्था हमारी सनातन परंपरा हैं, जिसमें हम अपने आराध्य देव की आराधना करते हैं। उन्हें पूजते हैं और उनके आशीर्वाद से हम फलीभूत होते हैं। पर सनातन धर्म में डेरा और स्वयंभू बाबा परंपराओं का कहीं भी स्थान नहीं है। इन डेरों के स्वामी खुद को भगवान मान लेते हैं और अपने भक्तों को धर्म का ऐसा चश्मा लगा देते हैं जिसमें कुछ दूसरा नजर नहीं आता है। हमें ऐसे बाबाओं और डेरों से सावधान रहने की जरूरत है। 
संपूर्णानंद ब्रहचारी 

वहीं अग्नि अखाड़ा के सचिव संपूर्णानंद ब्रहचारी कहते हैं अखाड़ा परिषद ने जो साहसिक कदम उठाया है उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है। हमें समझने की जरूरत है कि संत समाज का हिन्दू धर्म और संस्कृति में एक अहम स्थान है। पर हमारी परंपरा में स्वयंभू बाबाओं का कोई स्थान नहीं। लोगों को इस बात को समझने की जरूरत है कि सनातन परंपरा और डेरा परंपरा या स्वयंभू परंपरा में कितना अंतर है। एक तरफ सनातन परंपरा है जिसने हिन्दू धर्म की स्थापना से लेकर इसे सींचने और सहेजने का काम किया है। जबकि स्वयंभू परंपरा का संचालन करने वाले डेराओं के बाबाओं ने धर्म के नाम पर एक ऐसा प्रदूषण फैलाया है जो हमारे समाज को धर्म से ही दूर कर रहा है। हमें समझने की जरूरत है।
आदि शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म के उत्थान और रक्षार्थ कई बड़े कदम उठाए। ऐसे ही एक कदम था सात अखाड़ों की स्थापना। इन अखाड़ों में महानिवार्णी अखाड़ा, निरंजनी आखाड़ा, जूना अखाड़ा, अटल आखाड़ा, आवाह्न अखाड़ा, अग्नि और आनंद अखाड़ा प्रमुख है। इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भी सनातन धर्म पर हमले हुए हैं इन अखाड़ों के साधू संतों ने अपनी सार्थक भूमिका का निर्वहन किया है। यहां तक कि अंग्रेजों के शासन के समय भी अंग्रेज इन अखाड़ों और साधू संतों की बातों को सुनते और समझते थे। इन्हें सम्मान देते थे। पर हाल के वर्षों में जिस तरह बाबाओं ने अपनी बाबागिरी और धर्म के नाम पर लूट खसोट का मायाजाल बिछाया है वह अकल्पनिय है।
इन बाबाओं की लिस्ट जारी कर अखाड़ा परिषद ने भारतीय समाज के लिए एक मार्गदर्शक का काम किया है। हालांकि अखाड़ा परिषद को भारतीय सनातन परंपरा को पवित्र रखने के लिए ऐसे ही कई और कड़े कदम उठाने की जरूरत है। सबसे जरूरी है ऐसे बाबाओं, धर्मगुरुओं, पीठाधिश्चरों, स्वयंभू संतों को चेतावनी जारी करना जिसमें स्पष्ट तौर पर इस बात जिक्र हो कि धर्म के नाम पर अगर किसी ने लोगों को गुमराह करने की कोशिश की तो उसे हरगीज स्वीकार नहीं किया जाएगा। डेरा सच्चा सौदा के सर्वेसर्वा राम रहीम के कुकर्मों का सामने आना इस बात का प्रमाण है कि कैसे ये स्वयंभू संत धर्म और आस्था के नाम पर लोगों के सेंटिमेंट से खिलवाड़ कर रहे हैं। मंथन करें और सचेत रहें।