Thursday, July 13, 2017

हट बुड़बक ! हमको समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है

एक साधारण छात्र नेता से सफर शुरू कर कोई राजनीति के इतने ऊपरी पायदान तक कैसे पहुंच सकता है यह कोई लालू यादव से सीख सकता है। छल कपट की राजनीति से ऊपर उठकर लालू यादव ने राजनीति की नई विधा का सृजन किया। यह विधा थी घोटाला करो, बदनाम हो जाओ और फिर राजनीति के शिखर पर पहुंच जाओ। बाद में मायावती, जयललिता जैसे कई नेताओं ने लालू से सीख लेते हुए खुद को स्थापित किया। लालू ने न केवल इस विधा का सृजन किया, बल्कि इसमें इतने सारे प्रयोग कर डाले की भारतीय जांच एजेंसियां लंबे समय तक सिर्फ और सिर्फ लालू यादव पर रिसर्च करें तो इसे उनके पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सकता है। फिलहाल जांच एजेंसियों ने काफी मशक्कत के बाद लालू यादव और उनके कुनबे के काले कारनामों की परत दर परत उखाड़ते हुए पूरी दुनिया को बता दिया है कि लालू यादव को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। हां यह मंथन का भी समय है कि लालू यादव जैसे राजनीतिज्ञ कैसे पाप पर पाप करते हुए घोटाले पर घोटाले करते हुए और भी मजबूत होते गए।
यह भारतीय राजनीति के इतिहास के उन काले अध्यायों का काल है जो आने वाले समय में राजनीति शास्त्र के विद्यार्थियों के लिए पाठ्य पुस्तक में शामिल हो सकता है। लालू यादव की पूरी जीवनी ही एक रिसर्च सब्जेक्ट बन सकती है कि कैसे एक कॉलेज का साधारण सा छात्र नेता अरबों खरबों का घोटाला करते हुए भी अपनी पहचान बनाए रखने में कामयाब रहता है। बिहार में लंबे समय तक राज करते हुए लालू यादव जब चारा घोटाले के मुख्य आरोपी बने तो राजनीतिक विरोधियों ने इसे लालू यादव युग का अंत बताया। पर सभी राजनीतिज्ञ पंडितों को पछाड़ते हुए लालू यादव और भी मजबूती के साथ राजनीति में आए। बिहार में जहां एक तरफ अपनी पत्नी को प्रदेश के मुख्यमंत्री का पदभार ग्रहण करवाया, वहीं आगे बढ़ते हुए केंद्र की राजनीति में आ गए। यह लालू यादव का राजनीतिक रसूख ही था कि तमाम घोटालों में मुख्य आरोपी होने के बावजूद केंद्र में रेल मंत्री जैसा अहम पद पाया। रेल मंत्री रहते हुए लालू यादव ने जो कुछ भी किया उसे कई विदेशी यूनिवर्सिटी ने भी सराहा। यहां तक कहा गया कि विदेशी यूनिवर्सिटी के छात्र लालू यादव का मैनेजमेंट फंडा समझने के लिए लगातार भारत आ रहे हैं।
रेल मंत्री रहते हुए लालू यादव ने रातों रात रेलवे का कायापलट कर दिया। जबर्दस्त घाटे में चल रहा रेल मंत्रालय केंद्र सरकार का सबसे कमाऊ पूत बन गया। यह सच में आश्चर्यजनक बदलाव था जिसे पूरी दुनिया देख रही थी। पूरा देश लालू पर गर्व करने लगा था कि एक हंसी ठिठोली करने वाला राजनेता इतना बड़ा मैनेजमेंट गुरु भी बन सकता है। रेलवे स्टेशन पर लिट्टी चोखा और कुल्हड़ वाली चाय का कांसेप्ट लाकर लालू चंद महीनों में सभी के दिलों पर राज करने लगे। उनके मैनेजमेंट गुरु वाले रूप ने उनके घोटाले वाले चरित्र को पूरी तरह ढंक दिया था। पर आज जब उनके सीबीआई, ईडी और तमाम जांच एजेंसियां लालू यादव और उनके कुनबे की प्रॉपर्टी को खंगाल रही है तो समझ में आ रहा है कि लालू न केवल असाधारण व्यक्तित्व के धनी हैं बल्कि उनके मैनेजमेंट को समझना इतना भी आसान नहीं। लालू के रेलमंत्रित्व काल के काले कारनामों का चिठ्ठा ज्यों ज्यों खुल रहा है लालू यादव और उनके कुनबे की परेशानियां भी बढ़ रही हैं।
लालू उन नेताओं में शामिल रहे हैं जो जितनी मुश्किलों में रहा है दोगुनी ताकत से वापसी करता है। सुप्रीम कोर्ट ने जब लालू यादव के राजनीतिक करियर पर 11 साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया था तो कहा जाने लगा था कि लालू यादव तो गया। उन हालातों में लालू यादव के कई करीबी साथियों ने भी उनका और राष्टÑीय जनता दल (राजद) का दामन छोड़ दिया। बिहार में बदली राजनीतिक परिस्थितियों के बीच जब विधानसभा चुनाव में विकास पुरुष नीतीश कुमार को राजद के साथ गठबंधन करना पड़ा तो राजनीतिक पंडित भी चौंक गए। पर लालू यादव को पता था कि उन्हें क्या करना है। अपने दोनों बेटों को राजनीति में उतार कर लालू यादव ने वह मास्टर स्ट्रोक खेला जिससे राजनीति के पिच पर जमे जमाए खिलाड़ी धूल चाटने लगे। बिहार विधानसभा चुनाव में बंपर सीट हासिल कर लालू यादव ने जता दिया कि भले ही वह राजनीति का वनवास झेल रहे हैं पर बिहार में उनका ही राज है। लालू ने एक बार फिर जता दिया कि लालू सिर्फ नाम ही काफी है।
अब राजनीति ने एक बार फिर करवट ली है। लालू और उनका पूरा कुनबा एक ऐसे रडार पर है जहां हर तरफ मुश्किलें ही मुश्किलें हैं। लालू एंड कंपनी के तमाम ठिकानों पर सीबीआई और ईडी की दबिश चल रही है। लालू के बेटे और बिहार के उप मुख्यमंत्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी है। बेटी और दामाद पर भी शिकंजा कसा जा चुका है। बिहार के कई घोटालों में लालू यादव और उनके दोनों बेटों का नाम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सामने आ चुका है। ऐसे में बिहार की राजनीति फिर से लालू और उनके आसपास झूल रही है।
नीतीश कुमार दूर बैठकर तमाशा देख रहे हैं और भविष्य की रणनीति पर मंथन कर रहे हैं। बीजेपी लालू यादव एंड कंपनी पर शब्द वाण से वार करते हुए राजनीति पर गिद्द दृष्टि टिकाए बैठी है।   कांग्रेस लालू यादव को प्रत्यक्ष रूप से सांत्वना दे रही है। ऐसे में राजनीतिक पंडितों को भी मंथन जरूर करना चाहिए। लालू एंड कंपनी क्या इन झंझावतों से खुद को बच पाएगी? क्या बिहार में नीतीश कुमार राजद के साथ अब लंबे समय तक बने रहेंगे? क्या फिर से बिहार में नीतीश और बीजेपी साथ आ रहे हैं? ये कुछ ऐसे ज्वलंत प्रश्न हैं जो वक्त का इंतजार कर रहे हैं। इन सवालों का जवाब तो वक्त आने पर ही मिलेगा। पर इतना जरूर है कि इतिहास गवाह है कि जब-जब लालू यादव पर इस तरह के हमले हुए हैं वो और मजबूती के साथ सत्ता के केंद्र में आते रहे हैं। टीवी चैनलों पर दिख रहे लालू यादव के तेवर यह बताने के लिए काफी हैं कि उन्हें अब किसी का डर नहीं। तमाम घोटालों में हजारों सबूत होने के बावजूद जब भारत की न्याय व्यवस्था उन्हें अधिक दिनों तक सलाखों के पीछे नहीं रख सकी तो ये आरोप उनके सामने क्या हैं। हां इतना जरूर है कि लालू के दो युवा पुत्रों की राजनीति जो अभी ठीक से शुरू भी न हो सकी थी वो मंझधार में जरूर है।

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