Monday, July 24, 2017

सिर्फ गृहणी नहीं, ‘वित्त मंत्री’ हैं घरेलू महिलाएंं

भारतीय न्यायिक व्यवस्था से जुड़ी बातों में एक सबसे बड़ी कमी यह है कि कई महत्वपूर्ण फैसले बिना किसी शोर शराबे के भीड़ में गुम हो जाती हैं। जबकि ऐसे फैसले नजीर के तौर पर पेश किए जाने की जरूरत होती है। चर्चा भी इसलिए जरूरी होती है क्योंकि इससे बड़े बदलाव की कहानी शुरू की जा सकती है। एक ऐसा ही फैसला कुछ दिन पहले मद्रास हाईकोर्ट ने दिया है। कोर्ट ने घरेलू महिलाओं के हक में फैसला सुनाते हुए कहा है कि एक घरेलू महिला को भी वेतन प्राप्ति का पूरा अधिकार है। वह घर की वित्त मंत्री होती है। उसे भी वेतन दिया जाए। इतना ही नहीं कोर्ट ने न केवल अपना फैसला सुनाया, बल्कि एक घरेलू महिला को उसके 24 घंटे के काम की पारिश्रमिक भी तय की। यह पारिश्रमिक तीन हजार रुपए तय की गई है। इस फैसले की पूरी चर्चा आज आपसे करूंगा, ताकि आप भी मंथन करें और एक घरेलू महिला के पूरे जीवन चक्र को सम्मान दें।
इस पूरी कहानी की शुरुआत होती है पुड्डूचेरी शहर से। वहां 2009 में मालती नाम की महिला की मौत बिजली के खुले तार की वजह से हो जाती है। पुड्डूचेरी बिजली बोर्ड को महिला के पति को मुआवजे के तौर पर पांच लाख मुआवजा देना था। बोर्ड ने मद्रास हाईकोर्ट में अपील दाखिल की। गुहार लगाई कि चुंकि महिला एक घरेलू महिला थी, जिसके कारण उसकी कोई आय भी नहीं थे, ऐसे में मुआवजे की रकम बहुत ज्यादा है इसे कम की जाए। भारतीय न्यायिक व्यवस्था के इतिहास में यह पहली बार था जब किसी मामले में फैसला देने के लिए एक घरेलू महिला के कार्यों का मुल्यांकन किया जाना था।
मद्रास हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति केके शशिधरन और न्यायमूर्ति एम मुरलीधरन की एक डिवीजन बेंच ने पूरे मामले की सुनवाई की। सुनवाई के दौरान तमाम तर्क पेश किए गए, लेकिन अंतिम फैसला घरेलू महिलाओं के पक्ष में आया। कोर्ट ने महिलाओं के अप्रत्यक्ष कार्यों और देखभाल का मूल्यांकन किया और उसे स्वीकृत किया। कोर्ट ने माना कि मालती एक डेडिकेटेड वाइफ थी। अपने दो बच्चों के प्रति भी वह समर्पित थी। वह घर की वित्त मंत्री थी। वह एक शेफ थी। वह घर की चार्टेड अकाउंटेंट थी। अपने घर की इनकम और खर्चे को नियंत्रित करती थी। एक पति ने अपनी घरेलू कंपनी का सबसे वफादार कर्मचारी खो दिया। दो बच्चों ने अपनी मां का प्यार खो दिया। ऐसे में यह नहीं माना जा सकता कि वह सिर्फ एक घरेलू महिला थी। इसीलिए उस महिला को एक कामकाजी महिला के रूप में देखा जाए और उसे हर मुआवजे का अधिकार है।
मद्रास हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए न केवल मालती को न्याय दिलाया, बल्कि गृहणियों के लिए एक ऐसा आधार तैयार कर दिया है जो आने वाले समय में काफी सकारात्मक बदलाव की तरफ ले जाएगा। भारतीय पुरुष प्रधान समाज में महिलाएं अपने अस्तित्व के लिए हमेशा से ही संघर्ष करती आई हैं। आज भारतीय महिलाएं अपने सर्वश्रेष्ठ समय में जी रही हैं, जहां उन्हें हर वो अधिकार प्राप्त है जिसके लिए वो लंबे वक्त से संघर्ष कर रही थीं। समाज के हर क्षेत्र में उन्होंने अपनी पहचान कायम की है। बॉर्डर की रक्षा करने के साथ-साथ वो हवाई जहाज उड़ा रही हैं।
मल्टीनेशनल कंपनियों के सर्वोच्य पदों पर बैठकर भी उन्होंने अपनी प्रतिभाएं दिखाई हैं। पर इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि आज इस मुकाम पर पहुंचने के बाद भी भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए बहसें हो रही हैं। बड़े-बड़े सेमिनार आयोजित किए जा रहे हैं। जब भी महिला सशक्तिकरण की बातें होती हैं तो यह जरूर महसूस होता है कि क्या सच में आज भी सशक्तिकरण पर चर्चा जरूरी है। महिला सशक्तिकरण पर काम करने वाली एक एक एनजीओ ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें इस बात का जिक्र किया गया कि आज की आधुनिक महिलाएं महिला सशक्तिकरण पर चर्चा को बेकार मानती हैं। उनका मानना है कि उन्हें सभी अधिकार मिले हैं। वे इस दम पर आगे बढ़ रही हैं। बेहतर मुकाम हासिल कर रही हैं। हां यह जरूर है कि भारतीय घरेलू महिलाओं की स्थिति आज भी चिंतनीय जरूर है।
भारतीय घरेलू महिलाएं आज भी खुद को उपेक्षित महसूस करती हैं। समाज की मुख्यधारा से वे खुद को अलग समझती हैं। कई मौकों पर ऐसा देखने को मिला है कि घरेलू महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पर मद्रास हाईकोर्ट ने देर से ही सही एक ऐसी सार्थक बहस को जन्म दिया है जिसमें घरेलू महिलाओं को भी उनके कार्यों की बदौलत एक बेहतर स्थिति में देखने का मौका मिला है। एक घरेलू महिला के दिन की शुरुआत सुबह पांच बजे से शुरू होकर देर रात तक रहता है। उन्हें कोई वीकली आॅफ नहीं मिलता। हर दिन उनकी ड्यूटी होती है। पूरे देश में छुट्टी हो पर एक घरेलू महिला अपने परिवार, बच्चों के लिए ड्यूटी पर रहती है। ऐसे अनगिनत काम हैं जिनका कभी मूल्यांकन नहीं किया गया। 

मद्रास हाईकोर्ट ने घरेलू महिलाओं के अनगिनत काम को भी ‘काम’ यानी रोजगार की श्रेणी में माना है। यह घरेलू महिलाओं के लिए प्रति एक बेहतर दृष्टिकोण की ओर इशारा करता है। कोर्ट ने मंथन करने के लिए हमें प्रेरित किया है कि हम अपनी घरेलू मां, पत्नी, बहन के कार्यों का सम्मान करें। फिलहाल कोर्ट ने एक घरेलू महिला के कार्यों का मुल्यांकन करते हुए मालती के केस में उसका वेतन तीन हजार रुपए मासिक तय किया। भले ही यह रकम काफी कम है, पर कोर्ट ने इस ऐतिहासिक फैसले के लिए बहुत कुछ कह दिया है। कोर्ट ने एक घरेलू महिला के अवैतनिक और गैर मान्यताप्राप्त कार्य को श्रम की श्रेणी में ला दिया है। एक घरेलू महिला को भी कामकाजी महिला की तरह सम्मान दिलाने का प्रयास किया है।

Thursday, July 13, 2017

हट बुड़बक ! हमको समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है

एक साधारण छात्र नेता से सफर शुरू कर कोई राजनीति के इतने ऊपरी पायदान तक कैसे पहुंच सकता है यह कोई लालू यादव से सीख सकता है। छल कपट की राजनीति से ऊपर उठकर लालू यादव ने राजनीति की नई विधा का सृजन किया। यह विधा थी घोटाला करो, बदनाम हो जाओ और फिर राजनीति के शिखर पर पहुंच जाओ। बाद में मायावती, जयललिता जैसे कई नेताओं ने लालू से सीख लेते हुए खुद को स्थापित किया। लालू ने न केवल इस विधा का सृजन किया, बल्कि इसमें इतने सारे प्रयोग कर डाले की भारतीय जांच एजेंसियां लंबे समय तक सिर्फ और सिर्फ लालू यादव पर रिसर्च करें तो इसे उनके पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सकता है। फिलहाल जांच एजेंसियों ने काफी मशक्कत के बाद लालू यादव और उनके कुनबे के काले कारनामों की परत दर परत उखाड़ते हुए पूरी दुनिया को बता दिया है कि लालू यादव को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। हां यह मंथन का भी समय है कि लालू यादव जैसे राजनीतिज्ञ कैसे पाप पर पाप करते हुए घोटाले पर घोटाले करते हुए और भी मजबूत होते गए।
यह भारतीय राजनीति के इतिहास के उन काले अध्यायों का काल है जो आने वाले समय में राजनीति शास्त्र के विद्यार्थियों के लिए पाठ्य पुस्तक में शामिल हो सकता है। लालू यादव की पूरी जीवनी ही एक रिसर्च सब्जेक्ट बन सकती है कि कैसे एक कॉलेज का साधारण सा छात्र नेता अरबों खरबों का घोटाला करते हुए भी अपनी पहचान बनाए रखने में कामयाब रहता है। बिहार में लंबे समय तक राज करते हुए लालू यादव जब चारा घोटाले के मुख्य आरोपी बने तो राजनीतिक विरोधियों ने इसे लालू यादव युग का अंत बताया। पर सभी राजनीतिज्ञ पंडितों को पछाड़ते हुए लालू यादव और भी मजबूती के साथ राजनीति में आए। बिहार में जहां एक तरफ अपनी पत्नी को प्रदेश के मुख्यमंत्री का पदभार ग्रहण करवाया, वहीं आगे बढ़ते हुए केंद्र की राजनीति में आ गए। यह लालू यादव का राजनीतिक रसूख ही था कि तमाम घोटालों में मुख्य आरोपी होने के बावजूद केंद्र में रेल मंत्री जैसा अहम पद पाया। रेल मंत्री रहते हुए लालू यादव ने जो कुछ भी किया उसे कई विदेशी यूनिवर्सिटी ने भी सराहा। यहां तक कहा गया कि विदेशी यूनिवर्सिटी के छात्र लालू यादव का मैनेजमेंट फंडा समझने के लिए लगातार भारत आ रहे हैं।
रेल मंत्री रहते हुए लालू यादव ने रातों रात रेलवे का कायापलट कर दिया। जबर्दस्त घाटे में चल रहा रेल मंत्रालय केंद्र सरकार का सबसे कमाऊ पूत बन गया। यह सच में आश्चर्यजनक बदलाव था जिसे पूरी दुनिया देख रही थी। पूरा देश लालू पर गर्व करने लगा था कि एक हंसी ठिठोली करने वाला राजनेता इतना बड़ा मैनेजमेंट गुरु भी बन सकता है। रेलवे स्टेशन पर लिट्टी चोखा और कुल्हड़ वाली चाय का कांसेप्ट लाकर लालू चंद महीनों में सभी के दिलों पर राज करने लगे। उनके मैनेजमेंट गुरु वाले रूप ने उनके घोटाले वाले चरित्र को पूरी तरह ढंक दिया था। पर आज जब उनके सीबीआई, ईडी और तमाम जांच एजेंसियां लालू यादव और उनके कुनबे की प्रॉपर्टी को खंगाल रही है तो समझ में आ रहा है कि लालू न केवल असाधारण व्यक्तित्व के धनी हैं बल्कि उनके मैनेजमेंट को समझना इतना भी आसान नहीं। लालू के रेलमंत्रित्व काल के काले कारनामों का चिठ्ठा ज्यों ज्यों खुल रहा है लालू यादव और उनके कुनबे की परेशानियां भी बढ़ रही हैं।
लालू उन नेताओं में शामिल रहे हैं जो जितनी मुश्किलों में रहा है दोगुनी ताकत से वापसी करता है। सुप्रीम कोर्ट ने जब लालू यादव के राजनीतिक करियर पर 11 साल के लिए प्रतिबंध लगा दिया था तो कहा जाने लगा था कि लालू यादव तो गया। उन हालातों में लालू यादव के कई करीबी साथियों ने भी उनका और राष्टÑीय जनता दल (राजद) का दामन छोड़ दिया। बिहार में बदली राजनीतिक परिस्थितियों के बीच जब विधानसभा चुनाव में विकास पुरुष नीतीश कुमार को राजद के साथ गठबंधन करना पड़ा तो राजनीतिक पंडित भी चौंक गए। पर लालू यादव को पता था कि उन्हें क्या करना है। अपने दोनों बेटों को राजनीति में उतार कर लालू यादव ने वह मास्टर स्ट्रोक खेला जिससे राजनीति के पिच पर जमे जमाए खिलाड़ी धूल चाटने लगे। बिहार विधानसभा चुनाव में बंपर सीट हासिल कर लालू यादव ने जता दिया कि भले ही वह राजनीति का वनवास झेल रहे हैं पर बिहार में उनका ही राज है। लालू ने एक बार फिर जता दिया कि लालू सिर्फ नाम ही काफी है।
अब राजनीति ने एक बार फिर करवट ली है। लालू और उनका पूरा कुनबा एक ऐसे रडार पर है जहां हर तरफ मुश्किलें ही मुश्किलें हैं। लालू एंड कंपनी के तमाम ठिकानों पर सीबीआई और ईडी की दबिश चल रही है। लालू के बेटे और बिहार के उप मुख्यमंत्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो चुकी है। बेटी और दामाद पर भी शिकंजा कसा जा चुका है। बिहार के कई घोटालों में लालू यादव और उनके दोनों बेटों का नाम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सामने आ चुका है। ऐसे में बिहार की राजनीति फिर से लालू और उनके आसपास झूल रही है।
नीतीश कुमार दूर बैठकर तमाशा देख रहे हैं और भविष्य की रणनीति पर मंथन कर रहे हैं। बीजेपी लालू यादव एंड कंपनी पर शब्द वाण से वार करते हुए राजनीति पर गिद्द दृष्टि टिकाए बैठी है।   कांग्रेस लालू यादव को प्रत्यक्ष रूप से सांत्वना दे रही है। ऐसे में राजनीतिक पंडितों को भी मंथन जरूर करना चाहिए। लालू एंड कंपनी क्या इन झंझावतों से खुद को बच पाएगी? क्या बिहार में नीतीश कुमार राजद के साथ अब लंबे समय तक बने रहेंगे? क्या फिर से बिहार में नीतीश और बीजेपी साथ आ रहे हैं? ये कुछ ऐसे ज्वलंत प्रश्न हैं जो वक्त का इंतजार कर रहे हैं। इन सवालों का जवाब तो वक्त आने पर ही मिलेगा। पर इतना जरूर है कि इतिहास गवाह है कि जब-जब लालू यादव पर इस तरह के हमले हुए हैं वो और मजबूती के साथ सत्ता के केंद्र में आते रहे हैं। टीवी चैनलों पर दिख रहे लालू यादव के तेवर यह बताने के लिए काफी हैं कि उन्हें अब किसी का डर नहीं। तमाम घोटालों में हजारों सबूत होने के बावजूद जब भारत की न्याय व्यवस्था उन्हें अधिक दिनों तक सलाखों के पीछे नहीं रख सकी तो ये आरोप उनके सामने क्या हैं। हां इतना जरूर है कि लालू के दो युवा पुत्रों की राजनीति जो अभी ठीक से शुरू भी न हो सकी थी वो मंझधार में जरूर है।