Sunday, October 23, 2016

वेमुला : विश्व विद्यालय से केंद्रीय विद्यालय तक

 





------------------------------------------------------------- के छात्र रोहित वेमुला
के सुसाइड केस ने देश-विदेश तक में सुर्खियां बटोरी थी। रोहित जैसे
हजारों छात्र हर साल किसी न किसी कारण से अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं।
आत्महत्या जैसा कदम उठाने के पीछे उनकी क्या मानसिकता होती है यह तो काफी
जटिल प्रश्न है, लेकिन इस जटिल प्रश्न से भी बड़ा एक और प्रश्न इस तरह की
आत्महत्याओं के राजनीतिकरण से जुड़ा है। रोहित के अलावा चंद ऐसे नाम होंगे
जिन्हें हम और आप जानते होंगे जिन्होंने पढ़ाई के दौरान आत्महत्या कर ली।
अब सवाल उठता है कि आखिर रोहित में ऐसा क्या था जिसने उसे इतना हॉट इश्यू
बना दिया? सीधा जवाब समझा जाए तो उसके पीछे दलित नाम का एक ऐसा शब्द जुड़ा
था जिसने उसे राजनीति का हिस्सा बना दिया। दलितों को लेकर राजनीति कोई नई
बात है, लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह दलितों को लेकर गोलबंदी और
राजनीति की जा रही है वह काफी चिंताजनक है। विश्वविद्यालय से निकलकर अब
यह दलित राजनीति विद्यालयों तक में पहुंच चुकी है। मंथन का समय है कि
शिक्षा के मंदिरों में इस तरह ‘रोहित वेमुला’ का उभरना कहां तक तर्कसंगत
है।
    हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी की तरह का मामला धीरे-धीरे काफी चर्चा
बटोर रहा है। मामला बिहार के सबसे बड़े शहर मुजफ्फरपुर से जुड़ा है। यहां
के सबसे प्रतिष्ठित केंद्रीय विद्यालय के एक छात्र की पिटाई का वीडियो
पिछले दिनों वायरल हुआ था। स्कूल की ही एक कक्षा में एक छात्र को कुछ
छात्र बुरी तरह पीट रहे थे। सभी स्कूल युनिफॉर्म में थे। किसी ने इस पूरे
प्रकरण को मोबाइल में कैद कर लिया, जो सोशल मीडिया में वायरल हो गया।
पुलिस प्रशासन तक भी यह वीडियो पहुंच गया। सोशल मीडिया में वायरल हुआ यह
वीडियो जैसे ही नेशनल टीवी मीडिया में प्रसारित हुआ पूरा केंद्रीय
विद्यालय संगठन हिल गया।
   25 अगस्त को यह वीडियो उस वक्त शूट हुआ था जब लंच ब्रेक के दौरान
क्लास रूम में उक्त छात्र को पीटा जा रहा था। उस वक्त क्लास में सात अन्य
छात्र भी मौजूद थे। कुछ दिनों पहले मीडिया में वीडियो वायरल होते ही
केंद्रीय विद्यालय संगठन (केवीएस) ने जांच कमेटी का गठन किया और दो मुख्य
आरोपी छात्र को स्कूल से निष्कासित कर दिया। साथ ही साथ मारपीट की घटना
पर कार्रवाई न करने पर प्राचार्य राजीव रंजन को सस्पेंड कर दिया गया।
इसके अलावा वॉइस-प्रिंसिपल सहित 13 शिक्षकों एवं आॅफिस सहायक का भी
ट्रांसफर कर दिया गया। जांच टीम ने केंद्रीय संगठन को अपनी रिपोर्ट में
क्या कहा यह स्पष्ट रूप से सामने नहीं आया है, लेकिन इतना जरूर है कि
रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि स्कूल प्रशासन ने इस घटना को
छिपाने का हर संभव प्रयास किया था। शायद यही कारण है कि एक साथ इतने सारे
शिक्षकों पर कार्रवाई हुई।
    ऐसा नहीं है कि 25 अगस्त को शूट हुआ वीडियो मुजफ्फरपुर जिला प्रशासन
के संज्ञान में नहीं था। स्कूल प्राचार्य द्वारा भी इस प्रकरण की जानकारी
जिलाधिकारी को दी गई थी। चुंकि स्थानीय जिलाधिकारी केंद्रीय विद्यालय
प्रबंधन बोर्ड का चेयरमैन भी होता है, इसलिए अनुशासनात्मक कार्रवाई के
लिए उनकी मंजूरी भी जरूरी है। वीडियो महज इत्तेफाकन शूट नहीं हुआ था,
बल्कि जानबूझकर शूट करवाया गया था, ताकि इसे दिखाकर अन्य छात्रों में
अपनी दादागिरी और रौब गांठी जा सके। इसी कारण से इसे तत्काल वायरल भी
किया गया। केवी से ही जुड़े कुछ पूर्व छात्रों ने इस वीडियो को तत्काल
मुजफ्फरपुर जिला प्रशासन को भी भेजा ताकि मामले की जांच हो सके। पर जिला
प्रशासन मुकदर्शक बना रहा। जब यह वीडियो नेशनल मीडिया में चलने लगी तब
जाकर सभी की नींद टूटी।
   नींद टूटने और इतनी बड़ी कार्रवाई के पीछे का सबसे बड़ा सच यह है कि जिस
छात्र की पिटाई हुई वह संयोग से दलित है। वीडियो वायरल होने से पूर्व
सबकुछ सामान्य था। पिटने वाला छात्र भी सामान्य तरीके से स्कूल आ जा रहा
था। नेशनल मीडिया में मामला आने के बाद जैसे ही उसके घर पर नेताओं का आना
जाना शुरू हुआ उसने भी बिस्तर पकड़ लिया। अब पूरा ड्रामा इस बात से है कि
एक छात्र जिसकी पिटाई हुई वह दलित था और जितने बच्चों और शिक्षकों पर
कार्रवाई हुई वह अगड़ी जातियों से संबंद्ध रखते हैं। हाल यह है कि पिछले
कुछ दिनों से बिहार से प्रकाशित होने वाले तमाम अखबार इस प्रकरण से रंगे
पड़े हैं। स्कूल के बाद प्रतिदिन धरना, प्रदर्शन हो रहे हैं। आगजनी और
तोड़फोड़ तक हो चुकी है। मुजफ्फरपुर के जिलाधिकारी से लेकर तमाम प्रशासनिक
 अमला स्कूल में शांति बहाली के प्रयास में लगा है। स्कूल के छात्र अपने
पुराने प्राचार्य को वापस लाने और उन पर हुई कार्रवाई को रद करने की मांग
पर अड़े हैं। स्कूल में पढ़ाई पूरी तरह ठप है। प्रतिदिन नेताओं की बयानबाजी
ने मामले को और गंभीर बना दिया है।
   अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस पूरे प्रकरण को एक सामान्य घटना के रूप
में लिया जाए या सच में यह एक असमान्य घटना है। जिसमें एक छात्र की
क्लासरूम में पिटाई हुई है। सच तो यह है कि ऐसी घटनाएं किसी भी स्कूल और
कॉलेज में सामान्य है। इसे अंदर से स्वीकार करने की जरूरत है। स्कूल या
कॉलेज छोटा हो या बड़ा हर जगह ऐसी घटनाएं सामान्य तरीके से होती हैं। निजी
हो या सरकारी सभी स्कूलों में छोटे मोटे विवाद अकसर मारपीट में तब्दील हो
जाते हैं। कुछ मामले स्कूल प्रबंधन तक पहुंचते भी हैं, पर अधिकतर मामले
बाहर ही बाहर निपटा दिया जाते हैं। मुजफ्फरपुर के केंद्रीय विद्यालय में
हुई मारपीट की इस घटना को भी अगर सामान्य तरीके से अनुशासनात्मक श्रेणी
में रखकर देखा जाता तो शायद इतना बड़ा बवाल नहीं होता। छात्र दलित हो या
सामान्य वर्ग से ताल्लुक रखता हो, मुद्दा यह नहीं होना चाहिए। मुद्दा तो
यह है कि एक स्कूल में क्लास रूम में अंदर मारपीट होती है। ऐसे में स्कूल
प्रबंधन को सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई करनी चाहिए।
   इस पर मंथन जरूर करना चाहिए कि हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के
छात्र रोहित वेमुला के सुसाइड केस और मुजफ्फरपुर केंद्रीय विद्यालय में
छात्र की पिटाई में इतनी समानता क्यों है? साथ ही इस समानता के बीच सबसे
अधिक नुकसान किसे है? क्यों हम शिक्षा के मंदिर को दलित और अगड़ी जाति की
लड़ाई का अखाड़ा बनाने पर तुले हैं। हमें यह समझना होगा कि इससे फायदा कौन
उठाना चाह रहा है। हैदराबाद केंद्रीय विद्यालय में रोहित के सुसाइड केस
के बाद वहां दिल्ली से नेताओं की फौज पहुंच चुकी थी। कई दिनों तक पढ़ाई
लिखाई ठप थी। तो क्या बिहार के मुजफ्फरपुर का केंद्रीय विद्यालय भी
धीरे-धीरे ऐसी ही राजनीति का शिकार बनेगा? मंथन का वक्त है कि हम खुद को
ऐसी राजनीति का हिस्सा ही क्यों बनने देते हैं।

Monday, October 3, 2016

सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगने वालों पाकिस्तान से कुछ सीखो

भारतीय जांबाजों ने पाकिस्तान को उसी की भाषा में समझाकर एक बेहतर संदेश दिया है। लंबे समय से इसी की प्रतीक्षा की जा रही थी। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में विशेष तौर पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आमंत्रित कर और फिर अचानक पाकिस्तान में उनके घर जाकर साफ कर दिया था कि भारत पाकिस्तान से दोस्ती चाहता है। दुश्मनी से कोई बातचीत संभव नहीं है। बावजूद इसके बार-बार पाकिस्तानी सेना भारत के सब्र की परीक्षा ले रही थी। सीजफायर का उल्लंघन, गुरदासपुर में आतंकी घटना, पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमला और फिर उड़ी में 19 भारतीय सैनिकों की शहादत ने आखिरकार भारत को कड़ी कार्रवाई करने पर विवश कर ही दिया।
उड़ी हमले के बाद जिस तरह भारत सरकार अपने देश के लोगों के अलावा अंतराष्टÑीय दबाव झेल रही थी उसने स्पष्ट कर दिया था कि आने वाले दिनों में बहुत कुछ होगा। भारत सरकार ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हर एक विषय पर सोची समझी रणनीति पर काम किया। पहले संयुक्त राष्टÑ में पाकिस्तान को उसकी ही बात पर घेरा। फिर सिंधु जल समझौता और मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा वापस करने की झिड़की दी। साथ ही साथ पीओके में घुसकर एक साथ कई आतंकी शिविरों को नष्ट भी किया। पाकिस्तान को भी इस बात का अंदेशा था, इसीलिए वह बार-बार परमाणु हमले की धमकी दे रहा था। पर भारत सरकार ने इस सर्जिकल स्ट्राइक से स्पष्ट कर दिया है कि अब छेड़ोगे तो छोडेंÞगे नहीं।
इस पूरे प्रकरण में सबसे अहम बात यह रही कि भारत सरकार ने खुद प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सर्जिकल स्ट्राइक करने की बात स्वीकार की। यह अपने आप में बहुत बड़ी डिप्लोमेटिक जीत है। जहां एक तरफ पाकिस्तान को भी फोन पर इस सर्जिकल स्ट्राइक की सूचना दी गई, वहीं अमेरिका, रूस सहित कई अन्य देशों को भी पूरे अभियान के बारे में बताया गया। सभी को जानकारी दी गई कि कैसे भारतीय जांबाजों ने पीओके में आतंकियों का सफाई अभियान चलाया है। पाकिस्तान की हालत सबसे बुरी है। वह न तो यह स्वीकार कर पा रहा है कि भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक कर कितने आतंकियों को मारा और न ही यह स्वीकार कर पा रहा है कि पीओके में सही में आतंकी प्रशिक्षण शिविर चल रहे हैं।
पाकिस्तान इस वक्त सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दे पर हर तरफ से घिरा हुआ है। पूरी दुनिया में उसकी फजीहत हो रही है। पर भारत के चंद तथाकथित बड़े बुद्धिजीवी भारत सरकार पर ही प्रश्चचिह्न लगाने पर तुले हैं। मीडिया के भी कुछ सो-कॉल्ड बड़े पत्रकार और हमेशा मोदी नीति के खिलाफ आग उगलने वाले चंद लोग भी भारत से इस सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगने में जुटे हैं। ये वैसे ही लोग हैं जो अपने होने का सबूत भी अपने परिजनों से मांगने में गुरेज नहीं करेंगे। ऐसे लोग ही भारत सरकार को नीचा दिखाकर खुद को लोकतांत्रिक देश का सबसे बड़ा पैरोकार मानने लगे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक-एक बात जिन्हें बुरी लगती है, ऐसे राजनीतिक लोगों ने भी इस सर्जिकल स्ट्राइक की बड़ाई की है। उन्होंने भी उड़ी का साहसिक बदला लेने के लिए भारतीय जांबाजों की जांबाजी को सराहा है। पर कुछ तथाकथित लोग अब भी भारत सरकार को कठघरे में खड़ा करने की छद्म मुहिम चलाने में जुटे हैं। यह ऐसा वक्त है जब पूरे भारत को एकजुट रहने की जरूरत है, वहीं ऐसे लोगों से सावधान रहने की भी जरूरत है। लोकतंत्र में फ्रीडम और एक्सप्रेशन के नाम पर कुछ भी ऊलजुलूल बोलने वालों के बहकावे में आए बिना हमें भारत सरकार को सपोर्ट करने की जरूरत है। राजनीतिक तौर पर चाहे सोनिया गांधी हों राहुल गांधी या फिर अरविंद केजरीवाल। सभी ने एक स्वर में भारत सरकार के इस सख्त कदम की प्रशंसा की है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत सरकार अपनी इस मुहिम को आगे भी जारी रखेगी। अंतरराष्टÑीय बॉर्डर पर जिस तरह का माहौल है उसमें युद्ध की संभावनाओं को भी नकारा नहीं जा सकता है। ऐसे में हर एक भारतीय को सावधान और सजग रहने की जरूरत है। पाकिस्तान की भाषा में सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत भारत सरकार से मांगने वालों के लिए यह करारा तमाचा होगा जब पाकिस्तान खुद यह बताए कि उसके कितने आतंकी लॉन्चिंग पैड धवस्त हुए हैं और कितने आतंकी मारे गए हैं। हालात ये हैं कि जहां भारतीय जांबाजों ने कार्रवाई की है वहां पाकिस्तानी सेना रात के समय जाकर आतंकियों के शवों की शिनाख्त में जुटी है। पाकिस्तानी मीडिया दबे स्वर में यह खबरें प्रकाशित कर रही है। जबकि वहां की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इस प्रोपेगेंडा में जुटी है कि कैसे भारतीय सेना को इस दौरान नुकसान पहुंचाया गया है। वहां के एक राष्टÑीय चैनल ने पिछले दिनों एक डॉक्टर्ड वीडियो चलाकर यहां तक दिखा दिया कि कैसे पाकिस्तानी सेना ने उनकी सीमा में घुस आए भारतीय सैनिकों को सबक सिखाया।

तो हे भारत के तथाकथित बुद्धिजिवियों! थोड़ा सा मंथन जरूर करो। पाकिस्तान से तुम्हें सीख लेने की जरूरत है कि वहां की मीडिया इन हालातों में सरकार के साथ कैसे खड़ी है। अब भविष्य में भारत सरकार से सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत मांगने से पहले एक बार जरूर पाकिस्तान भी होकर आ जाओ ताकि तुम्हें पता चल सके कि   राष्टÑप्रेम क्या होता है और संकट के समय अपने सरकार के साथ किस तरह खड़ा रहा जाता है। भारतीय सेना को तो जो करना था उसने कर दिया। पूरा भारत चाहता है कि सेना बिना बताए भी ऐसा ही करती रहे। फिलहाल, नरेंद्र मोदी और उनकी टीम को राजनीतिक स्तर और सैन्य स्तर पर इतनी बड़ी जीत के लिए बधाई।