Monday, April 4, 2016

तो क्या होनी चाहिए ‘राष्ट्रभक्ति’ की परिभाषा?


किसी को ‘भारत माता की जय’ बोलने में दिक्कत है। कोई राष्ट्रगान गाने में शर्मिंदगी महसूस करता है। किसी को ‘जय हिंद’ बोलना अच्छा नहीं लगता है। ऐसे लोगों पर देशद्रोही और भारत मां से प्रेम न करने का ठप्पा लगना स्वाभाविक ही है। और ऐसा हो भी रहा है। तत्काल ऐसे लोग देशद्रोही की श्रेणी में आ जा रहे हैं। सोशल मीडिया में तो ऐसे देशद्रोहियों की ऐसी खबर ली जा रही है कि अब इस पर लंबी बहस शुरू हो गई है। पर मंथन का वक्त है कि आखिर राष्ट्रभक्ति की परिभाषा क्या होनी चाहिए? क्या क्रिकेट मैच में जीत का जश्न ही राष्ट्रभक्ति  है या हार जाने पर क्रिकेटर्स को गाली देने से ही हम देशद्रोही की श्रेणी में आ जाएंगे।
देशद्रोही कौन है और राष्ट्रभक्त कौन, इस पर हाल के दिनों में एक ऐसी बहस शुरू हो गई है जो इससे पहले शायद नहीं थी। बहस होती भी थी तो इतनी नहीं, जितनी हाल के दिनों में हो रही है। आज से पहले कभी नहीं सुना गया कि किसी को ‘भारत माता की जय’ कहने में आपत्ति हो। इससे पहले कभी सुनने को नहीं मिलता था कि राष्ट्रगान गाने की कोई बाध्यता है। इसे सोशल मीडिया का प्रभाव कहें या भारत में राष्टÑीयता का धुव्रीकरण, ये संकेत अच्छे नहीं हैं।
सानिया मिर्जा ने भले ही भारत के लिए हजारों बार तिरंगा उठाया। हजारों बार भारत की आन-बान और शान के लिए विपक्षियों को धूल चटाया, पर जैसे ही सानिया ने एक पाकिस्तानी युवक से शादी की उसकी राष्टÑभक्ति पर सवालिया निशान लगने शुरू हो गए। राष्टÑभक्ति का सबसे अधिक ज्वार अगर कभी दिखता है तो वह है भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच में। मैच के दौरान हर एक भारतीय के खून में राष्टÑभक्ति उबाल मारने लगती है। क्या हिंदू, क्या मुसलमान और क्या सिख, सभी राष्टÑभक्ति के रंग में रंगे रहते हैं। ऊंच-नीच का भेदभाव मिट जाता है। अमीरी-गरीबी का फर्क मिट जाता है। न कोई छोटा होता है और न कोई बड़ा। सभी भारतीय बन जाते हैं। क्रिकेट मैच के दूसरे दिन फिर वही खाई पट जाती है। तो क्या मान लिया जाए कि एक क्रिकेट मैच देशभक्ति की सबसे बड़ी परिभाषा है। या फिर इससे अधिक भी कुछ और है।

दरअसल, देशभक्ति और देशद्रोही में फर्क सिर्फ सोच का है। यह सोच ही आपको देश के करीब लाती है और यह सोच ही आपको देश से बहुत दूर लेकर चली जाती है। जब कोई युवा भारतीय सेना में शामिल होता है तो उसे स्वत: देशभक्ति का प्रमाण मिल जाता है। पर उसी युवा में जब भ्रष्टाचार के अंकुर प्रस्फुटित होते हैं और वह थोड़े से लालच में आकर देश के साथ गद्दारी करता है तो उसे हम क्या कहेंगे? यह सिर्फ सोच का फर्क है। हम जैसा सोचते हैं हमारी राष्टÑभक्ति, हमारी राष्टÑीयता और हमारी गद्दारी सब उसी में परिलक्षित होती है। यह किसी सर्टिफिकेट की मोहताज नहीं होती है।

हां, इस सच्चाई से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि ‘भारत माता की जय’ या ‘वंदे मातरम’ गाना हमें देश के करीब लाता है पर इसे देशभक्ति का सर्टिफिकेट कदापि नहीं माना जा सकता है। किसी ने अगर क्रिकेट में भारत की जीत का जश्न नहीं मनाया तो वह गद्दार घोषित नहीं किया जा सकता है। पर विडंबना यही है कि इन दिनों भारतीय समाज में यही माहौल बनता जा रहा है। देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांटने का ठेका खुल गया है। यह सोच धीरे-धीरे इतनी खतरनाक बनती जा रही है कि आने वाले समय में सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही जाएगी।

भारत में रहने वाला हर एक भारतीय है और हर एक भारतीय अपनी मातृभूमि से प्रेम करता है। इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए। जो गद्दार हैं, जिनके मन में भारत के प्रति द्वेष है वह कभी भारत और भारतीयों के सगे नहीं हो सकते। उनसे आप जबर्दस्ती ‘भारत माता की जय’ बुलवाकर भी उनकी गद्दारी को बदल नहीं सकते। ऐसे में लाजिमी हो जाता है कि हम अपनी सोच को थोड़ा बदलें। हर बात को राष्टÑभक्ति की परिभाषा में बदलने की सोच को हमें बदलना होगा। हमें उस सोच से भी परहेज करने की जरूरत है जो इन दिनों सोशल मीडिया के जरिए हमारे मन मस्तिष्क में पहुंचाने की कोशिश की जा रही है।

मंथन करने की जरूरत है कि क्यों हम आज अचानक से राष्टÑवाद और देशद्रोह पर इतना अधिक सोचने लगे हैं। क्या इससे पहले कोई सीमा पर शहीद नहीं होता था, क्या आज से पहले कोई देश विरोधी बातें नहीं करता था। फिर ऐसा क्यों है कि हम आज आश्चर्यजनक रूप से देशभक्त और देशद्रोही जैसे दो खेमों में बंट गए हैं। क्यों हमें गली मोहल्ले तक में राष्टÑभक्त और देशभक्त होने जैसे सर्टिफिकेट बांटने वाले मिलने लगे हैं। यह विशुद्ध रूप से भारत में एक ऐसी गंदी राजनीतिक परंपरा की शुरुआत है जिसे हमें और आपको ही रोकना होगा। तो आगे बढ़िए, रोकिए इस गंदी राजनीति को और बंद करिए सर्टिफिकेट बांटने वालों की दुकानों को।