Monday, March 28, 2016

ये कैसा उन्माद, ये कैसा अफवाहों का दौर


फेसबुक खोल लें, ट्विटर पर जाएं, व्हॉट्स ऐप देख लें, आपको अजीब सी फीलिंग आने लगेगी। हर तरफ एक उन्माद है। यह उन्माद भी कई तरह का है। पर सबसे घातक उन्माद है सांप्रदायिकता का। बिना कुछ सोचे समझे, बिना किसी तर्क के सांप्रदायिकता से ओतप्रोत मैसेज, थॉट, फैब्रिकेटेड वीडियो शेयर किए जा रहे हैं। अपने विवेक को किनारे रखकर ऐसी-ऐसी बातें लिखी और शेयर की जा रही हैं, जिसका न तो सर होता है और न पैर। ताजा मामला दिल्ली में एक डॉक्टर की कुछ उन्मादी युवकों द्वारा पीट-पीट कर हत्या से जुड़ा है।
दिल्ली में 23 मार्च की रात डॉ. पंकज नारंग को एक मामूली बात पर इतना पीटा गया कि उनकी मौत हो गई। यह कोई नई बात नहीं है। भारतीय समाज में आए दिन ऐसे मामले सामने आते रहते हैं, जिसमें मामूली कहासुनी पर बात इस कदर बढ़ जाती है कि गुस्सा हिंसा का रूप ले लेता है। और तो और, कुछ मामलों में हिंसा हत्या का स्वरूप ले लेती है। कई बार तो यह मामूली बात सांप्रदायिक दंगों के रूप में सामने आती है। डॉ. पंकज नारंग के मामले में भी ऐसा ही हुआ। देर रात कुछ युवकों से उनकी कहासुनी हो गई। कुछ देर बाद वे युवक अपने कुछ और दोस्तों के साथ डॉ. पंकज के साथ मारपीट करने पहुंच गए। क्षमायाचना के बाद भी युवक नहीं माने और डॉ. पंकज को तब तक मारते रहे जब तक उनकी मौत नहीं हो गई। यह उन्माद का एक ऐसा उदाहरण है जिसकी पीड़ा से हम सभी कभी-न-कभी जरूर गुजरे हैं। पर इसके बाद क्या हुआ?
इसके बाद जो कुछ हुआ और जो कुछ हो रहा है वह इस उन्माद से कहीं ज्यादा गंभीर है। सोशल मीडिया से लेकर तमाम मेन स्ट्रीम मीडिया ने भी इस मामले को इतना सांप्रदायिक बना दिया है जो भारत के भविष्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इस घटना का विश्लेषण करने में तमाम सांप्रदायिक पंडित सबसे आगे रहे। तमाम तरह की पोस्ट शेयर की जाने लगी। डॉ. पंकज ट्विटर पर ट्रेंड करने लगे। कहा जाने लगा कि डॉ. पंकज की हत्या करने वाले युवक बांग्लादेशी थे। तर्क दिया गया कि जिस वक्त यह हत्या हुई उसके ठीक पहले भारत और बांग्लादेश का मैच था। दिल की धड़कनों को रोक देने वाले इस मैच में भारत ने शानदार जीत दर्ज की थी। इससे बांग्लादेशी फैंस निराश थे। डॉ. पंकज अपने बच्चों के साथ देर रात में इस जीत का जश्न क्रिकेट खेलकर मना रहे थे। तभी मोहल्ले से गुजर रहे इन युवकों के साथ उनकी कहासुनी हो गई और उनकी निर्मम हत्या कर दी गई। उन्मादी युवकों का बांग्लादेशी कनेक्शन निकाल लिया गया। जिस मोहल्ले में डॉ. पंकज रहते थे उसके आगे झुग्गी बस्तियां हैं। जहां अधिकतर बांग्लादेशी परिवार रहते हैं। वे युवक उसी बस्ती में रहते थे। चूंकि वे बांग्लादेशी थे इसीलिए वे मुसलमान थे, इस पर खुद-ब-खुद मुहर भी लगा दी गई। इसके बाद सोशल मीडिया में विचारकों की भेड़चाल ने पूरे मामले को इस कदर सांप्रदायिकता के रंग में रंग दिया कि खुद एडिशनल डीएसपी को सफाई देनी पड़ी कि जिन युवकों को इस मामले में अरेस्ट किया गया है उसमें पांच हिंदू परिवार से भी संबंधित हैं।
मामला बस इतना भर नहीं है कि नफरत भरे हजारों मैसेज ने कितना पैनिक क्रिएट किया। दादरी में अखलाख की मौत से लेकर हैदराबाद के रोहित वेमुला की आत्महत्या को इस जघन्य हत्या से किस कदर जोड़ा गया, इस पर मंथन की जरूरत है। हमारी सोच क्या हो गई है। हम किस कदर सोशल मीडिया की मोहपाश में संप्रदायवादी होते जा रहे हैं, इस पर गंभीरता से सोचा जाना चाहिए। कैसे हम सोशल मीडिया में भेड़चाल का हिस्सा बनकर खुद को ऐसे मायाजाल में उलझाते जा रहे हैं कि हमारे आसपास कुछ भी घटित होते ही हम उसमें हिंदू-मुस्लिम का एंगल तलाशने लगे हैं। यह बेहद घातक संकेत है।
दादरी में अखलाख की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गई क्योंकि कुछ लोगों ने समाज में ऐसी अफवाह फैला दी कि लोग उन्मादी हो गए। डॉ. पंकज की हत्या में सोशल मीडिया के समाज में ऐसी अफवाह फैला दी कि हर कोई बांग्लादेशियों से नफरत करने लगा। यह संभलने का वक्त है। अफवाह हर तरफ है। सामान्य समाज से लेकर सोशल मीडिया के समाज में भी। हर कदम आपको सतर्क रहने की जरूरत है। खासकर इन दिनों एक बेहद प्लान तरीके से सोशल मीडिया में ऐसी बातों को लिखा जा रहा है जहां आप किसी न किसी तरह खुद को उलझा हुआ महसूस करने लगें। यही हो भी रहा है।

हद तब हो जाती है जब मुख्यधारा की मीडिया के बड़े नाम भी इस तरह की सांप्रदायिकता के दौर में खुद को जोड़ लेते हैं। जोड़ने का असर ही है कि वे भी बिना किसी तर्क और सूझ-बूझ के लोगों के समक्ष ऐसी बातें प्रायोजित कर देते हैं कि सामान्य बुद्धि का व्यक्ति अपना सिर पटकने लगता है। उसे यह समझ में नहीं आता है कि क्या सच है और क्या झूठ। मंथन करने का वक्त है कि हम बिना किसी भेड़चाल का हिस्सा बने सोशल मीडिया में बने रहें या भेड़चाल का हिस्सा बनकर अफवाहों को और फैलाएं। यह अफवाह ही हमें कहीं न कहीं उन्मादी बनाती जा रही है। इस उन्माद और अफवाह से बचना ही होगा। इसका प्रयास अभी से शुरू कर दीजिए।

Thursday, March 17, 2016

मोदी जी! याद रखिए, हरियाणा के लोग आपको माफ नहीं करेंगे


जिस ऊर्जा और उम्मीद के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने पर हरियाणा के लोगों ने लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया था वह उम्मीद एसवाईएल के मुद्दे पर धरासाई हो गई है। राजनीति ने एक ऐसा गुल खिलाया है कि हरियाणा और पंजाब में पानी की लड़ाई में मोदी चुप बैठे हैं। हवाला दिया जा रहा है कि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।  हरियाणा और पंजाब के बीच एसवाईएल यानि सतलुज यमुना लिंक नहर का मुद्दा कोई आज से गरम नहीं है। कई दशक से यह मुद्दा दोनों प्रदेशों में लड़ाई का सबसे बड़ा कारण रहा है। अब इस झगड़े ने एक ऐसा सियासती रंग ले लिया है जिसने केंद्र की बीजेपी सरकार को एक्सपोज कर दिया है।
मोदी और मजबूरी
मोदी चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि आने वाले चंद महीनों में पंजाब में विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने वाला है। मोदी और उनके सिपहसलार पंजाब में बादलों से कोई पंगा लेना नहीं चाह रहे हैं। हरियाणा वाले तो वैसे भी पांच साल के लिए बंधक बने ही हुए हैं। पंजाब में अकालियों के साथ अभी छेड़छाड़ हुई तो आने वाले समय में और भी बुरा परिणाम भुगतना पड़ सकता है। क्योंकि पंजाब में एंटी इनकंबेंसी फैक्टर हावी है, ऐसे में अगर बीजेपी ने जरा भी बादलों को आंखें दिखाई तो पूरा गेम ही पलट जाएगा और इसका सबसे अधिक फायदा कांग्रेस उठा ले जाएगी। हरियाणा के सभी सांसद मोदी के दरबार में फरियाद लगा रहे हैं, लेकिन बात-बात में ट्वीट करने वाले मोदी इतने बड़े मामले पर चुप्पी साधे बैठे हैं।
बादल की दबंगई
उधर, बादल सरकार अपनी मनमानी पर उतारू है। केंद्र सरकार की एसवाईएल मामले पर हस्तक्षेप न करने की नीति ने बादल सरकार को मनमानी की खुली छूट दे दी है। तभी तो पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने के बावजूद पंजाब विधानसभा में इस संबंध में बिल पेश कर दिया जाता है। नहर के लिए किसानों की अधिकृत करीब 3928 एकड़ जमीन को वापस करने का बिल भी पेश कर दिया जाता है। कहा जाता है कि जमीन के बदले दिया गया मुआवजा भी किसानों से नहीं लिया जाएगा। यहां तक की हरियाणा सरकार को उसका रुपया लौटा दिया जाता है, जो दो दशक पहले नहर की खुदाई के लिए दिया गया था। और हद इस बात का कि सरकारी मशिनरी का दुरुपयोग करते हुए एसएवाईएल नहर पाटने का काम भी शुरू कर दिया जाता है। 

माइलेज गेम 
चुनावी माइलेज पाने की हड़बड़ाहट देखिए कि जिस 122 किलोमीटर लंबी नहर बनाने में करीब तीन साल का लंबा वक्त लगा था उस नहर के 44 किलोमीटर क्षेत्र को सैकड़ो जेसीबी मशीन लगवाकर बादल सरकार ने एक दिन में भरवा दिया। अभी यह काम जारी ही है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने वीरवार को यथास्थिति बनाने का आदेश दिया है। कांग्रेस भी नहर पाटने में अकालियों के साथ जुटी है।
कैप्टन की पारी
पंजाब में अपनी कप्तानी के लिए दूसरी पारी की बाट जोह रहे कैप्टन अमरिंदर और कांग्रेस के लिए यह मुद्दा संजीवनी के रूप में देखा जा रहा है। क्योंकि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के समय ही हरियाणा के साथ पानी का समझौता रद किया गया था। आसन्न विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एसवाईएल के मुद्दे को जबर्दस्त तरीके से भुनाना चाह रही थी, पर प्रकाश सिंह बादल ने मास्टस्ट्रोक फेंकते हुए नहर का ही अस्तित्व मिटा देने की चाल चल दी है। किसानों को उनकी जमीन वापस करने का आश्वासन देकर बादल ने एक ऐसी सियासी पासा फेंक दिया है जिसे काट पाना कांग्रेस के लिए मामूली नहीं होगा। कांग्रेस अब अकालियों के साथ मिलकर नहर पाटने के काम में जुटी है। कैप्टन अमरिंदर की पत्नी पूर्व सांसद परनीत कौर बुधवार को अपने दल बल के साथ फावरा लेकर नहर पाटने निकली थी।

है कोई जो हरियाणा का सुध लेगा?
अब सवाल उठता है इस नहर के पानी से सबसे अधिक फायदा किसे होने वाला था और सबसे अधिक घाटा किसे उठाना होगा। कहते हैं पंक्षी, नदिया, पवन के झोकों को कोई रोक नहीं सकता। यह अपनी उन्मुक्त उड़ान और बहाव से चलते हैं। पर हरियाणा की किस्मत में शायद यह नहीं है। पंजाब के किसान तो पानी आने से भी खुश थे और न आने से भी खुश हैं, क्योंकि सरकार ने उनकी जमीन भी वापस करने की बात कह दी है और मुआवजा भी नहीं वसूलने की गारंटी दे दी है। पर हरियाणा के किसानों का क्या? लंबे समय से अपनी फसलों के लिए सिंचाई के बेहतर संसाधन की बाट जोह रहे हरियाणावासियों को उम्मीद थी कि केंद्र में बीजेपी, हरियाणा में बीजेपी और पंजाब में अकाली बीजेपी के गठबंधन की सरकार से अच्छे दिन आएंगे। हरियाणा में दस साल कांग्रेस की सरकार होने के कारण पंजाब के अकालियों से रिश्ते मधुर नहीं हो सके। जिसके कारण यह मुद्दा विवादित ही बना रहा। पर अब यह मुद्दा संग्राम में तब्दील हो जाएगा, इसकी किसी ने परिकल्पना नहीं की थी। इस महासंग्राम में सबसे अधिक आश्चर्यजनक प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी है। ऐसे में हरियाणा के हितों की रक्षा कौन करेगा यह गंभीर सवाल है। क्योंकि सभी जानते हैं कि कोर्ट में यह मुद्दा इतना जल्दी सुलझने वाला नहीं है। ऐसे में चुनाव भी आ जाएगा। मुद्दा भी भुना लिया जाएगा। हरियाणावासी तो   चुप ही रहेंगे, क्योंकि उन्होंने पहले ही सत्ता सौंप रखी है। पंजाबवासी बल्ले-बल्ले कर रहे हैं, क्योंकि जमीन भी वापस मिल रही है और मुआवजा तो उनके खातों में पड़ा ही रहेगा।
पर मोदी जी, भले ही इस तरह की राजनीति करके पंजाब में आप बढ़त बना लें, यह पब्लिक सब जान गई है। माफ नहीं करेगी। याद रखिएगा।

Monday, March 7, 2016

‘बोल कि लब तेरे आजााद हैं’

पांच राज्यों में चुनाव का शंखनाद हो चुका है। बिसात तैयार है। सभी खिलाड़ियों को भी उनके काम पर लगा दिया गया है। गठबंधन से लेकर प्रत्याशियों तक को लगभग फाइनल कर लिया गया है। पर सबसे अधिक मंथन इस बात पर किया जा रहा है कि चुनाव में क्या बोलना है और क्या नहीं। किससे क्या बोलवाना है और कब, इन सब पर बेहतर तरीके से वर्क किया जा रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण पिछले दिनों जेएनयू कैंपस में कन्हैया की जेल यात्रा के बाद दिखा। 

देशद्रोह का आरोप झेल रहे कन्हैया कुमार को अदालत ने भले ही तमाम नसीहत देते हुए सशर्त जमानत दी है, पर राजनीति के इस दौर में उसे भी सिखा ही दिया गया ह्यबोल कि लब तेरे आजाद हैं।ह्ण तुझे कब क्या बोलना है। और कब क्या नहीं बोलना है, इसकी ट्रेनिंग का पहला फेज भी पूरा हो चुका है। चुनाव के दौरान तुम्हें अपने सभी भाषणों में लालझंडे की जगह तिरंगा थामना है, ताकि तुम पर देशविरोधी का दोबारा ठप्पा न लगे। साठ-पैंसठ साल में जिस भुखमरी और गरीबी से लोगों को आजादी नहीं मिली है उसके लिए प्रधानमंत्री मोदी को कठघरे में खड़ा करना है। लोग गरीबी में जी रहे हैं और पूंजीवादी देश को दीमक की तरह खा रहे हैं, उसके लिए मौजूदा सरकार को दोषी बनाना है। गोबर थामने वाली को तुम बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर देख सकते हो, लेकिन एक पूर्व अभिनेत्री को एचआरडी मिनिस्टर बनने पर तुम्हारे पेट में दर्द होता है। कन्हैया के बाहर निकलते ही सीताराम येचुरी का बयान सामने आया कि कन्हैया पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार के लिए जरूर जाएगा। इसी के साथ जेएनयू में कन्हैया के भाषण का स्क्रिप्ट भी तैयार कर दिया गया था। तमाम मीडिया चैनल के लाइव टेलिकास्ट ने भी स्पष्ट कर दिया कि देश को एक और युवा नेता मिल चुका है। और वह आने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में खूब सेलेबल आइटम होगा। 
अफजल गुरु को ज्यूडिशयल किलिंग का शिकार बनाए जाने की बात कहने वाले तमाम छात्रों को जेनएयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया की जमानत ने ज्यूडिशियल सिस्टम पर थोड़ा तो भरोसा जरूर दिलाया होगा। शायद यही कारण है कि जेल से बाहर आकर हीरो की तरह भाषण देने वाले कन्हैया को सभा में तिरंगा झंडा लहराते हुए पूरे देश ने देखा। देश से आजादी मांगने वालों की जुबान पर अचानक से देश में आजादी की जयघोष सुनाई देने लगी। भूख से आजादी, पूंजीवाद से आजादी मांगने वालों को कुछ नहीं सूझ रहा था तो नारे लगाकर उन्होंने अपनी भड़ास निकाली। प्रधानमंत्री सहित तमाम ऐसे नेताओं को ललकारा गया जिससे यह संदेश साफ हो गया कि कन्हैया और उसके जैसे छात्र नेता कैसे राजनीति का शिकार होते हैं। 

वाम दलों को तो पहले से ही जेनएयू का कैंपस काफी बेहतर लगता रहा है। यही कारण है कि सीताराम येचुरी ने स्पष्ट कर दिया कि कन्हैया को पश्चिम बंगाल में प्रचार के लिए ले जाया जाएगा। बात सिर्फ विचारधारा और उससे उपजे हालातों की नहीं है। मंथन करने का वक्त है कि हम एक राष्टÑ की बात करने के लिए तिरंगा हाथों में उठाते हैं या अदालत के डंडे के कारण हाथ में तिरंगा उठाना आपकी मजबूरी थी। कहते हैं हाथी के दो दांत होते हैं, एक दिखाने के और दूसरा खाने के। जब आपने अपने दिलों में राष्टÑ को बांटने और टुकड़े-टुकड़े करने की हसरत पाल रखी हो तो दिखावे के लिए आपको हाथों में तिरंगा लेना राष्टÑभक्ति कम और नौटंकी ज्यादा ही लगती है। सच है कि राष्टÑभक्ति या राष्टÑभक्त का प्रमाण देने के लिए किसी को जरूरत नहीं है। कम से कम भारत में। न ही इसके लिए कोइ सर्टिफिकेट सेंटर खोलने की जरूरत है। पर इतना जो जरूर किया जा सकता है कि विचारधारा के नाम पर जो भारत की अखंडता और संप्रभुता को बांटने की कोशिश करे उसे सिरे से खारिज करने की बात कही जाए।

आज पूरे भारत में मुख्य तौर पर विचारधारा दो गुटों में बंटी है। एक जो मोदी के समर्थक हैं और दूसरा जो मोदी के विरोधी हैं। कहते हैं चोर-चोर मौसेरे भाई। जो समर्थक हैं, वो तो भक्त हैं ही, लेकिन कभी धुर विरोधी रहे जब दो दल विरोधी को पटखनी देने के लिए एक साथ जेएनयू कैंपस में पहुंच जाएं तो समझ लीजिए सबकुछ ठीक नहीं है। कांग्रेस ने संसद में जेएनयू में देशविरोधी गतिविधियों की जमकर निंदा की। पर वोट की राजनीति के मोहपाश में बंधे हुए कांग्रेस नेता जिस तरह जेएनयू कैंपस में जाकर आनन-फानन में भाषणबाजी कर आए, संसद में इस प्रश्न का उनके नेताओं के सामने कोई जवाब नहीं था। पूरे देश ने इसे देखा और समझा है। इसमें कोई शक नहीं कि अगर आप सच्चे भारतीय हैं तो आपको राष्टÑभक्ति का प्रमाण देने की जरूरत नहीं। न ही आपके लबों से बोलने की आजादी कोई छीन नहीं सकता है। पर अगर आपको लब खोलने की इजाजत मिली है तो इसका दुरुपयोग करने की इजाजत भी किसी ने आपको नहीं दी है। यह बोलने की ही तो आजादी है कि हर कोई अपनी बात कह रहा है। खुलेआम प्रधानमंत्री को गाली दे रहा है। नहीं तो इमरजेंसी के वक्त के हालात के किस्से कहानियों को आज भी सुना और पढ़ा जा सकता है।