Monday, July 20, 2015

एक रणछोड़ जो पूरी पाकिस्तानी सेना पर पड़ गया भारी

रणछोड़दास की फाइल फोटो। (साभार)
कुछ दिन पहले ही बीएसएसफ ने एक ऐसा फैसला लिया है जो शायद इतिहास में पहली बार हो। किसी भारतीय पोस्ट का नाम एक सीविलियन के नाम से रखा गया है। उत्तर गुजरात के सुईगांव इंटरनेशनल बॉर्डर पर एक पोस्ट का नाम रणछोड़दास के नाम से किया गया है। अब तक जितने पोस्ट बने हैं वे या तो धार्मिक या सैन्य सम्मान में रखे गए हैं। यह पहली बार है कि किसी पोस्ट को एक आम भारतीय के नाम से समर्पित किया गया है। बीएसएसएफ ने न केवल इस पोस्ट का नाम रणछोड़दास के नाम पर रखा है, बल्कि एक बड़ी प्रतिमा भी वहां लगाने जा रही है।
पिछले दिनों आई इस खबर ने मुझे काफी चौंकाया। फिर खोजीबीन की। जो जानकारी हाथ लगी वो अद्भूत थी। सोचा आप तक भी साझा करूं।
दरअसल फिल्म थ्री इडियट्स के किरदार रणछोड़दास से तो बच्चा-बच्चा परिचित है, पर इस रणछोड़दास की कहानी बहुत कम लोग जानते हैं। यह भारतीय इतिहास का एक ऐसा हीरो था जिसने अकेले दम पर पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे। रेगिस्तान की धरती पर इसने करीब बारह सौ पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारने में अहम भूमिका निभाई थी। रणछोड़ का पूरा नाम रणछोड़भाई सवाभाई रबारी था। बाद में इन्हें सिर्फ रणछोड़दास के नाम से ही जाना गया। इनका जन्म वैसे तो पाकिस्तान के गढडो पीठापर जिले के घरपारकर में हुआ था। पर भारत के पेथापुर गथडो गांव के मूल निवासी थे। विभाजन के बाद यह गांव पाकिस्तान में चला गया, इसके बाद वे भारत आ गए और गुजरात के रेगिस्तान को अपना घर बना लिया। गुजरात के बनासकांठा में वे रहने लगे। पशु चराकर अपनी आजीविका चलाने के कारण वे कच्छ के रेगिस्तान के एक-एक कोने से वाकिफ थे। उनकी इसी खूबी ने उन्हें वो सम्मान दिलाया जो भारतीय इतिहास में अमर हो गया।

पाकिस्तानी की लड़ाई ने दिलाया सम्मान
भारत पाकिस्तान के बीच 1965 की लड़ाई कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण थी। पाकिस्तान ने कई भारतीय गांवों पर कब्जा कर लिया था। पाकिस्तानी सेना कच्छ  के रास्ते भारतीय सीमा में काफी अंदर तक घुस आई थी। उन्होंने कच्छ सीमा पर विद्याकोट थाने पर भी कब्जा कर लिया था। यहां जंग के दौरान काफी संख्या में भारतीय सैनिक शहीद हुए थे। भारतीय सेना ने अपना प्रमुख पोस्ट खो दिया था। सेना की दूसरी टूकड़ी को इस पोस्ट पर कब्जा करने के लिए भेजा गया। चुनौती यह थी कि 72 घंटे के अंदर वहां पहुंचें। भारतीय फौज अपने दस हजार सैनिकों के साथ इस पोस्ट पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़ी। अगर तय समय पर भारतीय फौज यहां नहीं पहुंचती तो पीछे से पाक सेना बढ़ती चली आ रही थी, फिर यह क्षेत्र हमेशा के लिए भारत से दूर हो जाता।
72 घंटे के अंदर कच्छ के छारकोट तक पहुंचना जरूरी था। ऐसे में सामने आए रणछोड़दास। रेगिस्तान के चप्पे-चप्पे से वाकिफ रणछोड़दास ने शॉर्टकट रास्ते से करीब 60 घंटे में ही भारतीय सेना को उसके तयशुदा मुकाम तक पहुंचा दिया। भारतीय सेना ने जबर्दस्त मोरचेबंदी कर ली। इसके बाद रणछोड़दास ने इलाके में छिपे करीब 1200 पाकिस्तानी सैनिकों की सटीक जानकारी भी भारतीय सेना को दी। हर तरफ पाकिस्तानी सैनिकों की घेराबंदी थी। पाक सेना की गोलियों की परवाह किए बिना रणछोड़दास कच्छ के रेगिस्तान में भटकते रहे। स्थानीय लोगों से परिचय का लाभ रणछोड़दास ने बखूबी उठाया। जल्द ही भारतीय सेना पूरी तरह रणछोड़दास पर निर्भर हो गई। रणछोड़दास के बताए तमाम लोकेशन पर भारतीय सेना ने एक साथ जबर्दस्त हमला कर पाक सेना की पूरी रणनीति को नेस्तनाबुत कर दिया। हजारों पाक सैनिक मारे गए। और रणछोड़ दास युद्ध के हीरो बन गए। पाकिस्तानी गजेट के अनुसार वहां 1200 सैनिकों की मौत हुई थी।
ठीक इसी तरह 1971 की लड़ाई में भी रणछोड़दास ने भारतीय सेना की कई जीत में अहम भूमिका निभाई। अपनी ऊंट पर सवार होकर जान की परवाह किए बगैर वे बड़ी आसानी से पाकिस्तानी सीमा तक का हाल पता कर लेते थे। रणछोड़दास का इनपुट इतना सटीक होता था कि भारतीय सेना ने कभी उनके इनपुट के विरुद्ध जाकर आॅपरेशन नहीं किया। एक बार तो जंग के दौरान अग्रीम चौकी पर तैनात भारतीय सेना के गोली बारूद खत्म होने पर उन्हें अपने दम पर सारा सामान मुहैया करवाया।
रणछोड़ दास की इस बहादूरी ने उन्हें भारतीय सेना द्वारा कई सम्मान दिलवाया। यहां तक की उन्हें राष्टÑपति मेडल द्वारा भी सम्मानित किया गया। बाद में उन्हें गुजरात के बनासकांठा पुलिस में बतौर पगी (मार्गदर्शक) शामिल कर लिया गया। वर्ष 2009 तक वे वहां तैनात रहे। उन्होंने वीआरएस ले लिया। जनवरी 2013 में 112 वर्ष की उम्र में उनका देहांत हुआ। पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनका   अंतिम संस्कार हुआ।

जनरल मॉनिक शॉ के साथ अनोखा रिश्ता
जनरल मॉनिक शॉ को भारतीय इतिहास का सबसे सख्त आर्मी आॅफिसर माना जाता है। उनकी बहादुरी और अनुशासन के किस्से भारतीय सेना में मौजूद हैं। कहा जाता है कि वे आम आदमी से मिलना जुलना अधिक पसंद नहीं करते थे। पर उनकी जिंदगी में रणछोड़दास की एक अलग हस्ती थी। मॉनिक शॉ ने रणछोड़दास को अपने साथ डिनर पर भी आमंत्रित किया। यहां तक की उनके लिए सेना का हेलिकॉप्टर भी भेजा। वे रणछोड़दास को पगी के नाम से ही पुकारते थे। मरते दम तक वे पगी का नाम लेते रहे। जनरल मॉनिक शॉ जब बीमार हुए और चेन्नई स्थित वेलिंग्टन हॉस्पिटल में उनका इलाज चल रहा था उस वक्त वे भी पगी का नाम लेते रहे। चिकित्सकों द्वारा पूछे जाने पर सैन्य अफसरों ने पगी की कहानी बताई तो डॉक्टर्स भी हैरान थे। यह संयोग ही रहा कि वे अपने अंतिम समय में अपने प्रिय पगी से नहीं मिल सके। आज भी कच्छ के रेगिस्तान में भारतीय सेना के लिए कई पगी काम कर रहे हैं। पर सेना में जो सम्मान रणछोड़दास को मिला वो शायद ही भविष्य में किसी दूसरे को नहीं मिल सके। शायद यही कारण है कि पहली बार किसी भारतीय अंतरराष्टÑीय सीमा का नाम किसी सिविलियन के नाम पर किया गया है। पोस्ट का नाम है रणछोड़दास रबारी पोस्ट। सलाम इस भारतीय सपूत को।

अगर आपको रणछोड़दास की जांबाजी की यह कहानी पसंद आई हो तो जरूर शेयर करें, ताकि आनेवाली पीढ़ी भी जान सके कि जिस फिल्मी रणछोड़दास को वे जानते हैं वह जानना ही काफी नहीं है, उससे बड़ी भी एक हस्ती हुई जो अमर हैं। पूरे भारत को इस देशभक्त रणछोड़दास पर गर्व है।

Saturday, July 18, 2015

लागा चुनरी में दाग छुड़ाऊं कैसे...

सर्फ एक्सेल का विज्ञापन कहता है कुछ दाग अच्छे होते हैं। दस रुपए का ही सवाल तो है। ऐसे में अपनों की खुशी के लिए ये दाग अच्छे हैं। खूब लगाओ दाग। सर्फ एक्सेल है ना, दाग पल भर में गायब हो जाएंगे। पर जनाब कुछ दाग ऐसे भी हैं जो दस रुपए से तो क्या दस करोड़ रुपए से भी नहीं छूटने वाला। यह दाग है ही कुछ ऐसा। आईपीएल की साख पर अरबों रुपए का दाग लगा है। ऐसा नहीं है कि यह दाग पहले नहीं लगा हो, पर वक्त ने इन दाग को थोड़ा धुंधला कर दिया था। इस बार यह दाग इतना मजबूत है जिसका प्रभाव आने वाले समय में काफी गहरा पड़ेगा। भले ही बीसीसीआई ने चेन्नई सुपरकिंग्स और राजस्थान रॉयल्स टीम को आईपीएल के फॉर्मेट से दो साल के लिए बाहर कर दिया है, पर मंथन का वक्त है कि क्या सिर्फ इतना भर कर देने से आईपीएल जैसे टूर्नामेंट की साख को दोबारा कायम किया जा सकता है।
भारत जैसे देश में जहां क्रिकेट धर्म की तरह पूजा जाता है और खिलाड़ियों को भगवान तक का दर्जा मिला हुआ है, उस देश में क्रिकेट की इस दुर्गति के बारे में कभी कल्पना भी नहीं की गई थी। भारत में क्रिकेट की इसी लोकप्रियता ने आईपीएल जैसे मेगा ग्लैमरस शो को अस्तित्व में लाया। क्रिकेट के इस मेगा ग्लैमरस शो ने अपने पहले ही साल में रुपयों की बरसात कर दी। पर सबसे अधिक फायदा हुआ देश के युवा क्रिकेटर्स को। हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद इंडियन टीम में हर साल एक से दो प्लेयर ही अपनी जगह बना पाते थे। कुछ प्लेयर तो ऐसे भी हुए जिन्होंने पूरी उम्र ही क्रिकेट को समर्पित कर दिया, फिर भी इंडियन कैप पहनने का उनका सपना पूरा नहीं हो सका। देवधर ट्रॉफी, दलीप ट्रॉफी और रणजी ट्रॉफी जैसे टूर्नामेंट का फॉर्मेट तो भारत में काफी पहले से मौजूद था, पर इनमें उतना पैसा और ग्लैमर नहीं था। न ही सुरक्षित भविष्य की गारंटी थी। कई प्लेयर आज भी मौजूद हैं जो अफसोस करते नजर आते हैं कि उनके समय में आईपीएल जैसा फॉर्मेट नहीं था। यह सही भी है। जिस तरह आईपीएल ने युवा क्रिकेटर्स को पैसा, रुतबा, ग्लैमर से लबरेज कर दिया उसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। अगर किसी प्लेयर में थोड़ा भी टैलेंट है तो पैसों की बारिश में भीगने से उसे कोई रोक नहीं सकता।
आईपीएल के हर एक सीजन में कई ऐसे युवा क्रिकेटर्स सामने आए जिन्होंने अपने प्रदर्शन से सभी को चौंकाया। रातों रात उन्हें सेलिब्रिटी स्टेटस मिल गया। विज्ञापन से लेकर विभिन्न कंपनियों ने उन्हें रोजगार देने के लिए बांह फैलाकर स्वागत किया। आईपीएल के फॉर्मेट ने उन लाखों युवा क्रिकेटर्स के लिए एक आस जगा दी है। गली क्रिकेट से लेकर छोटे-छोटे शहरों में पनपने वाले क्रिकेटर्स की पौध ने क्रिकेट को कॅरियर आॅप्शन के तौर पर रख लिया है। पर हाल के वर्षों ने इस फॉर्मेट में इतनी विसंगतियां पैदा कर दी हैं, जिससे डर भी लगने लगा है। फिक्सिंग का ऐसा दाग इस फॉर्मेट पर लगा है जिसने क्रिकेट की दुनिया को कलंकित कर दिया है।
जिस वक्त आईपीएल की शुरुआत हुई थी इसका फॉर्मेट दस टीमों का था। बाद के वर्षों में यह आठ टीमों पर आकर टिक गया। अब जब दो टीमों को दो साल के लिए बाहर कर दिया गया है ऐसे में अब छह टीम के साथ नया सीजन पूरा होगा।
यह मंथन का समय है कि हम क्रिकेट के इस बेहतरीन फॉर्मेट को किस तरह सुरक्षित रखें। अरबों रुपयों का व्यापार करने वाले इस फॉर्मेट से न केवल युवा क्रिकेटर्स को फायदा मिलता है, बल्कि लाखों लोगों के रोजगार के लिए इस फॉर्मेट के योगदान को कम नहीं आंका जा सकता है। एक-एक मैच से होनी वाली आमदनी इतनी है कि आसानी से कोई टीम हर साल करोड़ों रुपए कमा लेती है। फिर ऐसी क्या मजबूरी है कि गलत तरीके से पैसा कमाने की होड़ में सभी शामिल हो गए हैं। दो साल पहले जब पूरी दुनिया ने इंडियन क्रिकेट के चमकते सितारे एस श्रीसंत को नैपथ्य में जाते देखा तब भी इस पर बहस हुई थी। एक पल में यह सितारा टूट कर इस कदर बिखर गया कि ब्रह्मांड में आज उसका नामो निशान नहीं है। इतना सबकुछ होते हुए भी इस फॉर्मेट से जुड़े लोग समझ नहीं रहे हैं। नहीं समझ पा रहे हैं कि यह दाग एक दिन उनकी हस्ती भी कलंकित कर देगा जो अब तक पाक साफ बने हुए हैं।
इस फॉर्मेट को बचाने के लिए क्रिकेट के बड़े सितारों को ही कुछ करना होगा। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि टीम के जितने भी मालिक हैं वे विशुद्ध रूप से व्यापारी हैं और व्यापारी अपना लाभ ही देखता है, चाहे वह कहीं से भी हो। ऐसे में अगर क्रिकेट के सितारे भी व्यापारी बन जाएं तो यह भारतीय क्रिकेट के साथ न्याय नहीं होगा। ऐसे में भारतीय क्रिकेट सितारे मंथन करें। उन्हें क्रिकेटर बनकर देश का प्यार पाना है या क्रिकेट के व्यापारी बनकर अपनी हस्ती को खत्म करना है। क्योंकि, एक बार अगर किसी क्रिकेटर की चुनरी पर दाग लग जाए तो वह एस श्रीसंत की तरह जिंदगी भर यही गाना गाएगा, लागा चुनरी में दाग छुड़ाऊं कैसे, घर (फील्ड) जाऊं कैसे....।

चलते-चलते
भले ही चेन्नई सुपर किंग्स और राजस्थान रॉयल्स टीम फिलहाल आईपीएल फॉर्मेट से बाहर है पर इन टीमों
से खेलने वाले अधिकतर क्रिकेटर इंडियन टीम में भी हैं। ऐसे में इस बात पर बहस शुरू हो गई है कि इन स्टार   क्रिकेटर को कैसे पाक-साफ मान लिया जाए। आने वाले समय में क्या आईपीएल अपना ग्लैमरस रूप कायम रखने में कामयाब रहेगी, क्योंकि हर मैच को अब फिक्स और स्क्रिप्टेड रूप में देखा जाने लगा है।

Saturday, July 11, 2015

दो कदम तुम भी चलो, दो कदम हम भी चलें


भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध के बाद ऐसा कोई दिन नहीं बीता जब बॉर्डर पर तनाव न हुआ हो। कई बार इस तनाव को कम करने का प्रयास किया गया, लेकिन हर बाद मुद्दों पर टकराव होते रहे। सबसे बड़ा मुद्दा कश्मीर को लेकर रहा है। सन 1972 में फिल्म आई एक हसीना दो दीवाने। फिल्म का एक गाना बड़ा ही मशहूर हुआ, बोल थे...दो कदम तुम भी चलो, दो कदम हम भी चलें, मंजिलें फिर प्यार के, आएंगे चलते-चलते। इस गाने के भाव को हम आज भी भारत-पाक के संबंधों को लेकर समझ सकते हैं। पर अफसोस इस बात पर है कि कदम उठते तो हैं चलने के लिए पर राजनीति की बेड़ियों में जकड़ जाते हैं। एक हसीना यानि कश्मीर के मुद्दे पर बयानों की ऐसी तलवारबाजी का प्रदर्शन होता है कि सभी कदम बेकार हो जाते हैं। फिल्म में भी गाने के बोल बदल जाते हैं और हीरो को गाना पड़ता है..दो कदम तुम न चले, दो कदम हम न चले, आरजू के दिए बुझ गए जलते-जलते।
रूस के उफा शहर में एक बार फिर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच महत्वपूर्ण बातचीत हुई है। लंबे समय से ऐसी बातचीत की उम्मीद की जा रही थी। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान नवाज शरीफ की दिल्ली में मौजूदगी ने साफ संकेत दे दिए थे कि कदम बढ़ा कर दिल मिलाने पर समहमति बनेगी। पर पाकिस्तान लौटते ही पाक रेंजर्स ने सीजफायर का उल्लंघन कर एक दूसरा ही संकेत दे दिया था। इसके बाद कई ऐसे मौके आए जब दोनों प्रधानमंत्री एक दूसरे के सामने आए, पर ये सभी मुलाकातें बेहद औपचारिकता भर रहीं। रूस में सम्मेलन के दौरान यह पहला मौका है जब दोनों प्रधानमंत्रियों ने आमने-सामने बैठकर कई मुद्दों पर विस्तार से बातचीत की। इस बातचीत के बाद दोनों देशों ने ज्वाइंट स्टेटमेंट जारी कर काफी स्पष्ट शब्दों में दोनों देशों की बातों को सामने रखा।
सबसे महत्वपूर्ण यह रहा है कि दोनों देशों के प्रधानमंत्री ने अपने तय समय सीमा से काफी अधिक देर तक बातचीत की। यह बातचीत करीब एक घंटे तक चली। यह समय सीमा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दोनों देशों के बीच अक्सर ऐसा होता आया है कि बातचीत समय सीमा से पहले ही खत्म हो जाती है। तनाव इतने अधिक भारी पड़ जाते हैं कि बातचीत की औपचारिकता ही महसूस होती रही है। इससे पहले इसी साल दोनों देशों के सचिव स्तर की वार्ता भी इसी तनाव के कारण रद हो चुकी है। ज्वाइंट स्टेटमेंट जारी करते हुए बताया गया है कि आतंकवाद के सभी स्वरूपों पर दोनों देशों ने कड़ी निंदा की है। पर लखवी के मुद्दे पर क्या बातचीत हुई है इस पर दोनों देशों ने कुछ भी बयान जारी नहीं किया है।
यहीं आकर बातचीत दोराहे पर चली जाती है कि एक तरफ पाकिस्तान हर बार आतंकवाद के मुद्दे पर कड़ाई से कार्रवाई की बात करता है, वहीं भारत में अमन के दुश्मनों को न केवल पनाह देता है, बल्कि उन्हें अपने यहां खुली छूट देता है। इससे पहले जब एक जून को भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान को ललकारते हुए कहा था कि जबतक लखवी के मामले पर पाकिस्तान ठोस निर्णय नहीं लेता है, भारत किसी तरह की बातचीत नहीं करेगा। अब जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के साथ इतनी बड़ी बैठक हो चुकी है तो इस मामले पर कुछ भी बयान सामने नहीं आ रहे हैं। इसी बात पर प्रधानमंत्री मोदी प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस और अपने सहयोगी शिवसेना के निशाने पर भी आ चुके हैं। इसे एक और यू-टर्न बताकर प्रधानमंत्री की खिंचाई की जा रही है।
मंथन जरूरी है कि हम कदम कहां तक बढ़ाएं और कहां अपने कदम को विराम दें। इससे संदेश गलत जाता है कि पहले हम अपने कदम रोक दें, फिर आहिस्ता से बढ़ा दें। जब आपने उस राह पर न जाने की पहले ही सोच ली है जो राह आतंक को बढ़ावा देता है तो फिर उस पर बातचीत का क्या फायदा। अगर आपमें क्षमता है तो इसका मुंहतोड़ जवाब दें। जमीनी हकीकत को स्वीकारते हुए अपनी व्यवस्थाओं को मजबूत करें। अच्छा तब होता जब सामने वाला आपकी बातों को गंभीरता से लेता। जब-जब बातचीत का दौर शुरू होता है पाक रेंजर्स सीजफायर का उल्लंघन कर अपनी मंशा जता देते हैं।
अब देखना यह है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नवाज शरीफ का दो कदम आगे बढ़ना पाकिस्तान के सिपहसालारों को रास आता है या नहीं। या फिर एक बार भारत और पाक की सीमाएं मोर्टार के गोले से थर्राएंगी। अगले साल नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान जाने का न्योता स्वीकार करके दिलेरी का परिचय दिया है। इस दिलेरी पर पूरे विश्व की नजर अभी से टिक गई है, क्योंकि दो कदम तुम भी चलो, दो कदम हम भी चलें की नीति के बाद चीन ने जो कुछ किया है उसे भी पूरी दुनिया ने करीब से देखा है।   

 चलते-चलते
पाकिस्तान में अभी से ही भारतीय प्रधानमंत्री को लेकर तमाम तरह की विरोधाभासी खबरों का आना सिलसिला शुरू हो चुका है। इन प्रायोजित खबरों में भारतीय प्रधानमंत्री को कमजोर और झुक जाने वाला इंसान बताया जा रहा है। एक टीवी कार्यक्रम में तो इस तरह से प्रधानमंंत्री का मजाक उड़ाया गया है जिसे अगर एक आम भारतीय भी देख ले तो उसका खून खौल उठे। पर सवाल अभी भी वही है कि वे कौन लोग हैं जो भारत-पाक के रिश्तों को मजबूत होता   नहीं देखना चाहते। आप भी मंथन करिए।