Monday, June 8, 2015

मुनि जी आपका नि:वस्त्र होना

आज शाम आॅफिस की कैंटिन बंद थी। अपने न्यूज एडिटर सुमित शर्मा के साथ आॅफिस के सामने नेशनल हाईवे के उस पार चाय की दुकान तक गया था। बगल में ही अंबाला-चंडीगढ़ रीजन का सबसे बड़ा और प्रतिष्ठित स्कूल है। अचानक वहां के मेन गेट पर हलचल होती है। चंद पलों में ही नि:वस्त्र चले आ रहे जैन मूनि नजर आते हैं। अगल-बगल चंद भक्तों की फौज के साथ पैदल चले आ रहे मुनि जी स्कूल में प्रवेश कर जाते हैं। नहीं पता स्कूल में मुनि जी के आने का क्या उद्देश्य होगा? नहीं पता कि स्कूल में वे प्रवचन देने आए हैं या फिर किसी अन्य काम से? पर इन सबके बीच कुछ ऐसा हुआ जिसने मुझे यह सबकुछ लिखने पर मजबूर किया। हो सकता है मेरा कुछ लिखना कुछ धर्मांध लोगों को अखरे। पर ‘कड़वे’ बोल तो जैन धर्म के सबसे बड़े मुनि जी भी बोलते हैं। वह भी टीवी पर। इसीलिए मुझे लगता है कि कड़वा बोलना अनुचित नहीं है।
              मैं बता रहा था स्कूल के सामने का दृश्य। मुनि जी के स्कूल में प्रवेश से ठीक पहले उनके सामने से दो महिलाएं भी गुजर रहीं थीं। अचानक वे दोनों सामने से नग्न चले आ रहे मुनि महाराज को देखकर वापस मुड़ गर्इं। यह शर्म और हया का ही परदा था कि जिस धर्म में आप जैसे जैन मुनियों को नि:वस्त्र देखने की आजादी है, वहीं दूसरे धर्मों में इस तरह के मामलों पर सार्वजनिक बातचीत करना भी असंस्कारी होने का प्रतीक माना जाता है। दोनों महिलाओं ने थोड़ी देर वापस चलने के बाद फिर अपनी राह जरूर पकड़ ली, पर यह सवाल भी छोड़ गई कि ऐसा क्यों है?
सामान्य धर्म का ज्ञाता भी इस बात को समझता है कि जब आपने मोक्ष प्राप्त कर लिया तो जीवन में सुख-दुख, रिश्ते-नाते, भोग-विलास, अपने-पराए की दीवारों के मायने खत्म हो जाते हैं। धर्म-गं्रथों में इस पर विस्तार से चर्चा की गई है। कुछ ऐसा ही जैन मुनियों के साथ है। माना जाता है कि आपने मोक्ष की राह पकड़ ली है। जिसके कारण दिगंबर बन चुके हैं, अर्थात दिक़ यानि दिशाएं ही आपका अंबर यानि वस्त्र हैं। शायद बहुत लोगों को पता न हो कि कितने कठिन तप और कठोर नियमों में आप बंधे होते हैं। पर छोटा सा सवाल जैन मुनियों से लाजमी है कि जब आपने मोक्ष की राह पकड़ ली है तो सार्वजनिक जीवन में इस तरह आपका विचरना कहां तक उचित है। हिंदु धर्म में ही नागा साधुओं की अपनी अलग दुनिया है। उन्हें तो कभी इस तरह सार्वजनिक जीवन में विचरते नहीं देखा जाता है। जिन्हें नागा साधु बनना होता है, या जो उनके कर्मकांडों से प्रभावित होते हैं वे उनके अखाड़ों में जाकर दीक्षा लेते हैं। वहीं रहते हैं, वहीं जीते हैं। कुंभ स्रान जैसे धार्मिक मौकों पर ही उनके सार्वजनिक दर्शन सुलभ होते हैं।
इतिहास का छात्र रहा हूं इसीलिए जैन धर्म के ऐहितासिक साक्ष्यों को पढ़ा और जाना है। पढ़ाई के दौरान ही मैंने जाना था कि जैन धर्म के 24 तीर्थकंर हुए। जिन्होंने जैन धर्म को प्रचारित और प्रसारित करने का काम किया। ऋषभदेव जी महाराज जिन्हें आदिनाथ भी कहा गया, से शुरू होकर भगवान महावीर तक जैन धर्म कैसे पहुंचा इसकी विस्तृत व्याख्या भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। इहितास बताता है कि जैन धर्म में ऋषभदेव, अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनंदन, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्व, चंद्रप्रभ, सुविधिनाथ, शीतलनाथ, श्रेयांस- नाथ, वासुपूज्य स्वामी, विमलनाथ, अनंतनाथ, धर्मनाथ, शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रत स्वामी, नमिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी के रूप में 24 तीर्थंकर हुए। महावीर स्वामी के बारे में ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर कई प्रमाण हैं। महावीर स्वामी के बाद कालांतर में जैन धर्म दो संप्रदायों में विभक्त हो गया। एक स्वेतांबर कहलाए, दूसरे दिगंबर कहलाए। स्वेतांबर संप्रदाय को मामने वाले मुनि स्वेत अंबर यानि सफेद वस्त्र धारण करते हैं, जबकि दिगंबर संप्रदाय के मुनि नग्न रहते हैं। दिशाएं ही उनका वस्त्र होती हैं।
हर धर्म और संप्रदाय की अपनी सीमाएं हैं। अपनी मान्यताएं हैं। अपनी प्रथा है और उन प्रथाओं को पालन करने के अपने नियम हैं। कम से कम भारत में किसी को इसकी इजाजत नहीं है कि वे किसी दूसरे धर्म या संप्रदाय के खिलाफ कोई टीका टिप्पणी कर दे। मुझे याद आ रही है कुछ साल पहले आगरा की वह घटना। जैन धर्म के दिगंबर संप्रदाय के एक बड़े मुनि महाराज जी का आगरा प्रवास था। शहर में प्रवेश के लिए उन्हें एक संप्रदाय विशेष बाहुल्य क्षेत्र से ले जाया गया था। चुंकि सामान्य अवस्था में किसी व्यक्ति को नग्न देखना कौतूहल का विषय हो जाता है। कुछ ऐसा ही वहां भी हुआ। संप्रदाय विशेष के लोगों ने मुनि महाराज की नग्न अवस्था पर टिका टिप्पणी कर दी। चंद दिनों बाद ही आगरा का माहौल ऐसा खराब हुआ कि एक हफ्ते तक वहां कर्फ्यू लगा रहा। सांप्रदायिक हिंसा में कई घर जल गए। लोग एक दूसरे के दुश्मन बन गए। पूरा शहर अशांत हो गया था।
यह सिर्फ टिका टिप्पणी का मसला भर नहीं है। यह सार्वजनिक जीवन का प्रश्न भी है। यह सच है कि जैन मुनियों को धार्मिक स्वतंत्रता मिली है कि वे नग्न अवस्था में सार्वजनिक जीवन में कहीं भी जा आ सकते हैं। पर यही काम जब कोई साधारण मनुष्य कर दे और किसी ने शिकायत कर दी तो उसके खिलाफ सार्वजनिक स्थल पर अश्लीलता फैलाने का मामला तक दर्ज हो सकता है। आईपीसी की धारा 294 में आपको जेल भेजा   जा सकता है। अगर किसी महिला के सामने आपने अश्लील हरकत की तो धारा 354 में आपके खिलाफ मुकदमा दर्ज होगा। यहां तक कि 81 पुलिस एक्ट में भी इसका प्रावधान है।
बात सिर्फ इतनी सी है कि जब आपने दीक्षा लेकर मोक्ष  प्राप्ती की राह पकड़ ली, तो फिर सार्वजनिक जीवन में आपके आने का क्या तात्पर्य है। क्यों आप स्कूलों और कॉलेजों में जाते हैं। हर धर्म की मान्यताएं अनंत हैं, पर यह भी स्वीकार करना होगा कि सिर्फ जैन धर्म को मानने वाले ही शहर में मौजूद नहीं हैं। उन्हें आपका इस तरह नग्न अवस्था में विचरण करना अखर सकता है। हो सकता है दिगंबर धर्म की मान्यताओं को मानने वाली महिलाओं को आपका नग्न होकर उनके सामने आना नहीं अखरे पर यह भी सच है कि दूसरे धर्म की महिलाओं के लिए यह काफी बड़ा परदा होता है। क्या सिर्फ धार्मिक मान्यताएं मानकर दूसरे संप्रदाय या धर्म को मानने वालों का चुप रहना मजबूरी है?
मोक्ष की तमाम परिभाषाएं हो सकती हैं, पर एक साधारण मनुष्य के तौर पर तो मैं तो सिर्फ यही मानता हूं कि जिसने सांसारिक मोह माया से मुक्ति पा ली उसने मोक्ष पा लिया। जब सांसारिक जीवन से आपने मुक्ति राह पकड़ ली है तो सार्वजनिक जीवन से भी आपको दूर हो जाना चाहिए। धर्म में तो वह शक्ति है कि हर किसी को अपनी ओर खींचती है। जिन्हें आपके पास आना है वे खुद आपके पास चलकर आएंगे। आपको उनको पास जाने की जरूरत नहीं है।आपका तप, आपकी कड़ी साधना, दैनिक जीवन में आपकी अनुशासनात्मक दिनचर्या अनुकरणीय है। इसका प्रभाव ही काफी है कि लोग आपके पास खींचे चले आएंगे। पर यूं आपका नि:वस्त्र विचरण करना कई बार सोचने पर मजबूर कर देता है।
और अंत में
(अगर मेरी बातों से किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचती तो मैं उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूं)

25 comments:

Unknown said...

This is very sensitive issue but Kunal Sir you put it very simple and requested way. This is very difficult sir.

Lakin ek baat to maanani hi padegi ki Aasharam jaise Paakhandiyo ke liye yeh Jain Muni ek udaharan hai ki ve nagn ho kar Sabko dikha rahe hai ki SADHUON OR SANTON KE LIYE KAAM VASNA CANTROL KARNA MUSHKIL NAHI HAI BASHARTE VE ORIGINAL SAADHU HO. VASTAV MAI JAIN MUNI ORGINAL SAADHU HAI. KAPDO SE NAHI MAN SE SAADHU HAIN.

BUT AFTER ALL
SOCIETY IS SOCIETY

sumeet said...

अच्छा विषय है सर, आपने धर्म के नाम पर पाखंड फैलाने वालों के बारे में लिखा है। निजी तौर पर मैं किसी धर्म विशेष से जुड़ी बातों-परंपराओंं के विरोध में नहीं हंू, परंतु जहां तक इन सबके सार्वजनिक जीवन में दखल का सवाल है तो मैं इसका विराध करता हूं क्योंकि मेरा मानना है कि किसी की भी धार्मिक मान्यताएं किसी दूसरे के लिए परेशानी का सबब नहीं बननी चाहिएं। सार्वजनिक जीवन के आचरण में हम सभी इस बात का ख्याल रखते हैं और हमें यह करना भी चाहिए। शरीर के तल से आगे बढ़ जाना, वस्त्रों की जरूरत ही महसूस न होना, लाज-शर्म से ऊपर उठ जाने के भी अपने कई तर्क हो सकते हैं परंतु अपनी धार्मिक मान्यताआें के प्रदर्शन के मोह में किसी दूसरे धर्म या संप्रदाय के लोगों को अचानक से असहज स्थिति में लाना कहां की समझदारी है। दूसरों के आचरण पर हमेशा नजर रखने वाले धर्म के ऐसे तथाकथित ठेकेदारों को अपने सार्वजनिक जीवन पर भी ध्यान देना चाहिए।

musaffir said...

सही कहा मुकेश जी,, मुझे मुनियों की कठिन तपशिलता पर जरा भी संदेह नहीं है,, मैं मन से सम्मान करता हूं।
बस बात आकर ठहरती है सार्वनिक जीवन में अन्य धर्मों को मानने वालों के शर्म और सम्मान पर।

musaffir said...

जी हां सुमित जी। मैंने भी कुछ ऐसा ही संदेश देने का प्रयास किया है।
न चाय की चुश्की के दौरान आप ये चर्चा छेङते और न मैं इतना कुछ लिख पाता।।

musaffir said...

सही कहा मुकेश जी,, मुझे मुनियों की कठिन तपशिलता पर जरा भी संदेह नहीं है,, मैं मन से सम्मान करता हूं।
बस बात आकर ठहरती है सार्वनिक जीवन में अन्य धर्मों को मानने वालों के शर्म और सम्मान पर।

Rashmi Khati said...

All these sant's n all r ecapist. Who ran from reality of responsibilties. They r not man enough to commit towards there real means of life nd relationships. Nd hum bhi ajeeb hain. Filmo mai gaano mai toh.nudity ko lkar khood halla machate hain. Jise bahut he artistic tareeke se dikhaya jaata hain. Or en ligo ki charan vandana krte hain. Jihne samajik vyavhaar se kii sarokaar ni.

musaffir said...

@Rashmi Khati
इसे न्यूडिटी की श्रेणी में पूरी तरह नहीं रखा जा सकता क्योंकि यह धार्मिक स्वतंत्रता का प्रश्न है, हां पर इतना जरूर है कि इस स्वतंत्रता पर बहस लाजमी है।
विडंबना यह है कि धर्म के मामलों में हम चुप हो जाते हैं।

musaffir said...

@Rashmi Khati
इसे न्यूडिटी की श्रेणी में पूरी तरह नहीं रखा जा सकता क्योंकि यह धार्मिक स्वतंत्रता का प्रश्न है, हां पर इतना जरूर है कि इस स्वतंत्रता पर बहस लाजमी है।
विडंबना यह है कि धर्म के मामलों में हम चुप हो जाते हैं।

Rashmi said...

Sach me ek bar sanyas le liya to sarvajaneek jeevan se dur ho jana chahiye.
Tabhi to logo ko pata chalega ki moksh parpty khud ko khud ke liye karni padti hai, Khud me badlav lana padta hai.
Jab sant sarvajanneek jagah pe uplabdh hote hai to samanya nagrik unhe fir se bhagwan maan ke haath jod leta hai aur usse lagta hai uuske paap dhul gaye. Koi fark nahi padta mitty ke bhagwaan ka aur santo ke hone se, bas karmkand ke liye ek aur adarsh taiyyar ho jata hai. Santo ko khud sochana chahiye ki aaisa karne se hum logo ko aur bhatka rahe hai(Agar wo sach me sant hai to log unke pass jayenge unnhe kahi jaane ki jaroorat nahi)
Bhagwaan budhha me bhi kaha hai "Atta Deep Bhav" yane khud ke deep khud bano. Jab kisi ko moksh ki prapty hoti hai to sirf ek wo hi insaan mukt hota hai, wo kisi aur ko mukt nahi karva sakta. Wo to hume sochna hai ki khud ke liye efforts leke mukt hona hai ya jindgi bhar haath jodke moksh prapty ki kamna karni chahiye enn so called santo ke samne.

Rashmi said...

Nudity is no where related to Moksh and liberation, keeping cloths on or off can't change your thoughts about lust. So it's just showing naive people that I am liberated I dont care about cloths. But does your mind is free of all the ill thoughts is known to yourself only. And being in public like this is no where sensible. Do they care what impact this makes on the other who don't belive in this. Noo

Rashmi said...

Nudity is no where related to Moksh and liberation, keeping cloths on or off can't change your thoughts about lust. So it's just showing naive people that I am liberated I dont care about cloths. But does your mind is free of all the ill thoughts is known to yourself only. And being in public like this is no where sensible. Do they care what impact this makes on the other who don't belive in this. Noo

musaffir said...

@ Rashmi Bante, Well said dear, i told you that u can write better. Keep writing.
Nicely coated lord budha..."Atta Deep Bhav" yane khud ke deep khud bano...

Anonymous said...

Aapke hindu me aghori naga baba murde ke sath sex karte he Uska kya? Mulla land kat.te he Uska kya?

Gaurav said...

Nice question sir
But I am sharing a link with , perhaps it can be the answer of your question..
https://youtu.be/rRgGcDMn8KU

Naman said...

प्रिय भाई,
मैं नमन जैन, आपकी भाषा और सभ्य तरीके से अपनी बात रखने से बहुत प्रभावित हुआ हूं शायद इसीलिए मैं आपके प्रश्नों का उत्तर देना चाहता हूं। देखो जीवन में भावनाओ का अपना अलग से और सबसे प्रभावशाली महत्व है। एक शिशु को नग्न देखकर हमारे या किसी भी समुदाय के किसी भी शिक्षित और अशिक्षित मनुष्य के हृदय में किसी प्रकार का कोई भी विकार भाव उत्पन्न नहीं होता उसका कारण है उस शिशु का निश्छल भाव। उस शिशु के अंदर कोई विकार भाव नहीं होता किसी के भी प्रति। इसीलिए हमें उस नग्न बालक से न तो शर्म का एहसास होता है और न ही हमारे मन में उसके प्रति कोई विकार भाव आता है। ठीक इसी प्रकार दिगम्बर मुनि होते हैं जिनके मन में जिनके ज्ञान में और जिनके चरित्र में कोई विकार नहीं होता। और ये शक्ति उत्पन्न होती है कठोर नियम तप और साधना से। इसीलिए हमें दिगंबर मुनि को ठीक उसी निश्छल भाव से देखना चाहिए जिस भाव से हम एक शिशु(बालक) को देखते है, निर्विकार। ये हमारी कमजोरी है कि हम उस भाव को हृदय में अंगीकार नहीं कर पा रहे। अब रही बात उन महिलाओं की जिनको आपने simultaneously capture किया था। उसके कई reason हो सकते हैं, हो सकता है उन्होंने पहली बार दिगम्बर मुनि को देखा हो। और ये तो हम सब जानते हैं कि कोई भी नई घटना हमारे सामने अचानक से घट जाए तो हम असहज हो जाते हैं शायद उनके साथ भी हुआ हो ये सिर्फ मेरा perspective है हो सकता है कोई और भी reason हो। और दूसरी बात जो आपने कही की अगर कोई आम नागरिक ऐसे ही निर्वस्त्र घूमे तो उसपर कानूनी कार्यवाही की जाती है, इसका कारण यह है कि इसे ही किसी के निर्वस्त्र होने में और दिगम्बर मुनि में जमीन आसमान का अंतर है, एक कामी नग्न है तो एक अकाम दिगम्बर,एक कि नग्नता स्वरूप है तो एक कि दिशाएं वस्त्र हैं (आप साधु के 28 मूलगुण को पढ़ो आपको दिशाओं का वस्त्र होने का अर्थ ज्ञात हो जाएगा), एक की नग्नता में विकार है तो एक निर्विकार दिगम्बर,एक कि नग्नता मजबूरी,अल्हड़पन या पागलपन है तो एक का दिगम्बरत्व साधना या लक्ष्य बहुत अन्तर है मेरे भाई कितना बताऊं सीधा सीधा कहूं तो ज्ञान का अन्तर है, क्रिया का अन्तर है, भाव का अन्तर है और चरित्र का अन्तर है। और ये अन्तर संविधान के निर्माता समझते थे इसीलिए इन सब बातों को मद्धे नजर रखते हुए यथावत कानून बने। इसीलिए किसी भी संप्रदाय की किसी भी महिला को कोई पर्दा करने की न तो आवश्यकता है और न ही मजबूरी। और अगर फिर भी शर्म आने जैसी स्थिति बने तो इस बात को सोचने की कोशिश करना की हमारे मन में ऐसा कोनसा विकार है जो नन्हे शिशु को देखने से नहीं आता अगर समझ आ जाए तो बस वही विकार दिगम्बर मुनि के दर्शन करते समय त्याग देना। और यह भी सोचना की ऐसा कौनसा विकार है जो अधिकांशतः सभी लोगो के अंदर है सिर्फ शिशु और दिगम्बर मुनि को छोड़कर।।
और अंत में
बड़े आकार कतरा का, समुंदर हो नहीं सकता
उठे भूचाल कितना भी, मु_अम्बर हो नहीं सकता
धमक धमकता तेज है जिसका,चमकता तन है कुंदन सा
यूं ही दुनिया में हर कोई, दिगम्बर हो नहीं सकता।।

सादर जय जिनेन्द्र
नमस्कार

love you zindagi said...

सर मै आपकी भावनाओ का सम्मान करती हूँ और सरहाना भी करती हूँ आपकी जैन धर्म के बारे मे इतना ज्ञान होना।लेकिन सर दिगंबर संत का निर्वस्त्र अहिंसा धर्म के पालन के लिए होते है सूक्ष्म से सूक्ष्म जीवो की भी हिंसा न हो ऐसी जागरूकता होती है और इसलिए वे नग्न नही दिगंबर होते है नग्न तो कोई भी हो सकता है। आपक कैसे कह सकते है हमारे गुरू अश्लीलता फैलाते है ये तो सामने वाले की दृष्टी है जिसकी जैसी दृष्टी उसकी वैसी सृष्टी। निर्वस्त्र तो एक छोटा बालक भी होता है लेकिन क्या आप उसके प्रति भी यही सोच रखेंगे नही न क्यो क्योकि उसके अंदर कोई विकार नही है तो दिगंबर को धारण करने का अर्थ निर्वस्त्र होना नही अपितु निर्विकार होना है। काम(वासना) का संबंध न तन से है न व्यसन से है अपितु यह तो हमारे मन से है अगर एक बार शरीर की अशुचिता का भाव आ जाए तो इंसान काम से विरक्त हो जाता है। और हाँ हमे हमारे गुरू मे भगवान दिखते है और जिसे दिगंबर संतो को देखकर अच्छा नही लगता वे टीवी दुनियादारी इंटरनैट देखना सब छोड़ दे शायद वजह बताने की जरूरत नही है। और आपके इस ब्लाॅग से एक बात याद आ गई कि अग्निपरिक्षा तो सीता की ही होती है वैश्यो की नही।

love you zindagi said...

सर मेरा आपसे बस इतना विनम्रपूर्वक निवेदन है कि आप एक बार अपने जीवन मे दिगंबर संत के दर्शन जरूर कीजिएगा आपके सारे भ्रम दूर हो जाऐगे। किसी भी परंपरा के पीछे का मर्म को जानने का प्रयास करीए न कि पहले से पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर उसके बारे मे राह बनाए।

love you zindagi said...

सर मेरा आपसे बस इतना ही कहना है कि आप अपने जीवन मे एक बार जरूर दिगंबर संत का दर्शन करे ताकि आपकी जो भी अशंका है वो दूर हो सके।धन्यवाद

love you zindagi said...
This comment has been removed by the author.
love you zindagi said...

सर आप लोग दिगंबर संत के निर्वस्त्र रहने से परेशान है और इससे आपकी भावनाओ को ठेस पहुँचती है ठीक है। लेकिन मै लोगो के वस्त्र को धारण करने से परेशान हूँ क्योकि जो वस्त्र पहने है वो विलायती है स्वादेशी नही। अगर आप 'खादी का इतिहास' पढ़ेगे तो आपक जान पाऐगे कैसे हमारा देश सोने की चिड़िया से निर्धनता की ओर आया। अगर देश से प्रेम है तो जरूरत है हथकरघा के वस्त्र को धारण करना जो स्वादेशी है। इससे यह तो सिध्द होता है दिगंबर संत आत्म धर्म के साथ राष्ट्र धर्म का भी पालन करते है। ऐसे गुरूओ को बालम्बार नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु।

love you zindagi said...

बहुत ही सुंदर। मै भी जैन हूँ और आपने इतने अच्छे से इतने तार्किक तरीके से और इतनी विनम्रपूर्वक अपनी बात रखी है कि सबकी अशंका दूर हो जाऐगी। आप एक सच्चे जैनी हो। जय जिनेन्द्र।

love you zindagi said...

मै आपकी पीड़ा समझ रही हूँ मुझे भी बहुत दुख होता है जब हमारे भगवान रूपी गुरू को लोग ऐसा कहते है लेकिन मेरा आपसे अनुरोध है कि हम अपना संयम बना के चले क्योकि हमे हमारे गुरू ने सबके प्रति प्रेम भाव रखने का संदेश दिया है हमे ऐसा कोई व्यवहार नही करना जिससे हमारे गुरू का मान कम हो

Admin said...

Sir rishabhdev ji kapde kyu nhi pahante the
ऋषभदेव जी कपड़े क्यों नहीं पहनते थे जबकि स्थूल बहू और भद्रबाहु तो महावीर स्वामी के बाद जन्म लिया था

पत्रकारिता दर्शन said...

इतनी कठिन साधना तो ईश्वर के लिये भी असम्भव हो,जो सृजन कर्ता है पालन कर्ता है और संहार कर्ता है, विचार करो यदि ईश्वर अहिंसा का पालन करे तो सृष्टि का संतुलन ही भष्मीभूत हो जाये.
आपका अज्ञानी साथी : पत्रकारिता दर्शन

Arunendra Prakash Gautam "Ajay" said...

Then why your name is LOVE YOU ZINDAGI...जीवन आपसे प्रेम है, kyo ni h