Monday, January 5, 2015

बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर, मेल कराती मधुशाला!

कहतें हैं, पी कर बोलने वाला हमेशा सच बोलता है। उसे न दुनिया की फिक्र होती है और न जिंदगी की। वह दूसरी दुनिया में रहता है। शायद इसीलिए दूसरे ग्रह से आने वाली की बात सुनकर ही उसे ‘पीके’ कहा गया। हमारे समाज में भी पी के रहने वालों की बातों को गंभीरता से नहीं लिया जाता है। कहा जाता है वह पी के बहक गया है। बहक इसलिए गया है क्योंकि वह पी के सच बोल ने लगा है। ऐसा सच जो सामान्य तरीके से स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि वह कड़वी होती है। इसी कड़वी सच्चाई को बयां करते हुए हरिवंश राय बच्चन ने अपनी अमूल्य रचना की थी। नाम भी इसे मधुशाला ही दिया। इसी मधुशाला में वे लिखते हैं।
दुत्कारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीनेवाला, 
ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्याला, 
कहां ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को? 
शरणस्थल बनकर न मुझे यदि अपना लेती मधुशाला।

दूसरे गोले (ग्रह) से आए पीके ने तो जो बात कहनी थी कह दी। उसे जो समझाना था समझा गया। यह बात भी साफगोई से बता गया कि कोई कपड़ा पहनकर तुमने जन्म नहीं लिया है। पर जिंदगी में कपड़ों के आधार पर कैसे तुम पहचाने जा रहे हो। सिख हो तो पगड़ी से पहचान और हिंदु हो तो टीका और माले से पहचान। दाढ़ी बढ़ा ली तो मुसलमान और गले में क्रॉस लटका लिया तो ईसाई। ये सारी बातें यहीं रह जाएंगी। ये सारे जाति धर्म मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च तक ही सीमित रहेंगे। अब हमारे ऊपर है कि हम कितनी बात समझते हैं, कितनी बात नहीं। पीके की बातों ने करोड़ों रुपयों की कमाई कर ली। उसके ऊपर विरोध-प्रदर्शन को तो कोई असर नहीं पड़ा। अब पीके की बात की खाल निकालने वाले खाल तो नहीं निकाल पा रहे पर पोस्टर जरूर फाड़ रहे हैं। कहीं सेक्यूलरिज्म की बातें हो रही हैं, कहीं इसे टैक्स फ्री करके राजनीतिक रोटी सेंकी जा रही है। कहा जा रहा है कि हिंदु विरोधी बातें ज्यादा कह गया पीके। उसे दूसरे धर्मों पर भी और बकवास करनी चाहिए।
पर सवाल यह है कि अगर पीके ने दूसरे धर्मों पर भी उतनी ही बातें कही होती तो क्या उसका विरोध नहीं करते। क्या उसकी पोस्टर नहीं फाड़ते। हिसाब हुआ बराबर कहकर चुप रह जाते। या कोई और भी कारण है, जिसके ऊपर से कोई परदा उठाना नहीं चाहता। बड़ी बजट की फिल्में, बड़ा नाम, अकूत रुपयों की बारिश जैसे तत्वों से क्या यह विरोध-प्रदर्शन मॉनिटर होता है? इस पर कोई कुछ कहने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पाता है। या इस पर भी मंथन क्यों नहीं किया जाता है कि जब-जब बड़ी फिल्में रिलीज होती हैं उसके साथ कांट्रोवर्सी क्यों जुड़ जाती है। कुछ साल पहले ही ओ माई गॉड जैसी फिल्म भी आई थी। पूरी धार्मिक व्यवस्था की इस फिल्म ने धज्जियां उड़ा कर रख दी थी। क्या गीता और क्या कुरान, सभी की बातों का इस फिल्म में पोस्टमार्टम किया गया था। पर उस वक्त तो कोई विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ। यह भी बता दूं कि यह फिल्म चंद करोड़ रुपए का व्यवसाय कर फ्लॉप फिल्मों की श्रेणी में आ गई।
नंगा पुंगा पीके सिर्फ यह बताने की कोशिश करता है कि आप उसे स्वीकार करें जिसने आपकी रचना की है। इस सृष्टि की रचना की है। उसे स्वीकार न करें जो आपके स्वयंभू भगवान बन गए हैं। आपका अपना कोई बीमार है तो तन-मन से उसकी सेवा करें। ईश्वर या अल्लाह से दिल से दुआ मांगें। ऐसा नहीं करें कि उसे तड़पता छोड़कर स्वयंभू भगवानों की बातों में आएं और रांग नंबर को रिसीव  करें। अगर अपने रिमोट को खोजने के लिए पीके को भगवान के पास जाने की सलाह दी जाती है तो वह जाता है। फिर चाहे वह मंदिर में भगवान खोजे, या मस्जिद में। उसके लिए तो गुरुद्वारा और चर्च भी एक समान ही है। उसे तो बस भगवान से मिलना है। भगवान की खोज में वह दर-दर की ठोकरें खाता है। तरह-तरह की सच्ची बातों को बताना है। लोगों की नजर में वह बेवड़ा बन जाता है। वह पीके बन जाता है। पर इससे भी वह संतुष्ट है। क्योंकि ....
धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला, 
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका, 

कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।
मुसलमान औ' हिन्दू हैं दो, एक, मगर, उनका प्याला, 

एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते, 

बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!

8 comments:

जिंदगी की तलाश में said...

Superb article...lagta hai aap bhi PK likhe hain. Clear n True.

musaffir said...

धन्यवाद आपका।

Pardeep Rana said...

बहुत बढ़िया सर, लेकिन जो लोग बोलते हैं कि हमारे धर्म का अपमान हुआ है सच्चाई ये है कि वो खुद अपना धर्म नहीं जानते वो तो सिर्फ दिखावा ही करते आएं हैं। हमारा हौसला बढ़ाने के लिए भी धन्यवाद।

Unknown said...

Really awesome sir

PK
MADHUSHALA
OR
DRUNKER
KA AWESOME USE
TO PUT YOUR VIEWS

musaffir said...

हाहाहा...प्रदीप जी आपके हौसले को सलाम। सही कहा आपने, हमें अपना धर्म भी पूरी तरह नहीं जानते। इसे समझने में पूरी जिंदगी निकल जाएगी।

musaffir said...

धन्यवाद मुकेश जी, हौसलाआफजई के लिए।

Nomadic Kuldeep said...

बड़े बड़े परिवार मिटें यों, एक न हो रोनेवाला,
हो जाएँ सुनसान महल वे, जहाँ थिरकतीं सुरबाला,
राज्य उलट जाएँ, भूपों की भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए,
जमे रहेंगे पीनेवाले, जगा करेगी मधुशाला।।

Achalganj said...

Dil