‘‘बहुत चंचल बहुत खुशनुमा सी होती हैं बेटियां
नाजुक सा दिल रखती हैं, मासूम सी होती हैं बेटियां
बात-बात पर रोती हैं, नादान सी होती हंै बेटियां
है रहमत से भरपूर, खुदा की नेमत हैं बेटियां
घर भी महक उठता है जब मुस्कुराती हैं बेटियां
होती है अजीब सी कैफियत जब छोड़ के चली जाती हैं बेटियां
घर लगता है सुना-सुना कितना रुला जाती हैं बेटियां
बाबूल की लाडली होती हैं बेटियां
ये हम नहीं कहते, ये तो खुदा कहता है कि
जब मैं बहुत खुश होता हूं तो पैदा होती है बेटियां ’’
यह कितना अद्भूत संयोग है। आज ही वसंत पंचमी है और आज ही गर्ल चाइड डे है। जीवन में किसी तरह की नई शुरुआत के लिए वसंत पंचमी का दिन ही श्रेष्ठ माना जाता है। यह जीवन के उत्साह का दिन है। इसी दिन प्रकृति करवट लेती है और तरफ सुख और समृद्धि की कामना होती है। ऐसी मान्यता है कि जब सृष्टि का निर्माण हुआ तो भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने मनुष्य की रचना की। मनुष्य की रचना के बाद भी हर तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। सभी मौन थे। सृष्टि में छाई विरानगी को दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने एक बार फिर ब्रह जी से निवेदन किया। ब्रह्म जी ने अपने कमंडल की जल से मां सरस्वती की उत्पत्ति की। मां सरस्वती से प्रार्थना की गई कि वे वीणा बजाकर सृष्टि के इस मौन को तोड़ें। इसी वीणा की नाद से समस्त संसार में चेतना आई। तभी से वसंत पंचमी पर मां सरस्वती के पूजन की परंपरा शुरू हुई।
कुछ इसी रूप में हमारी बेटियां भी हैं। संपूर्ण सृष्टि की तंद्रा को जागृत करने, इसमें उल्लास भरने, नव ऊर्जा का एहसास दिलाती ये बेटियां ही हैं जो सृष्टि के मौन को तोड़ने का दम रखती हैं। पुराणों की बात करें, वेदों की बात करें हर जगह इन्हें देवी के रूप में पूजा गया है। मानव सृष्टि का हर एक अंग इनके रूप रंग से गुलजार है। पर यह विडंबना ही है कि इन बेटियों को बचाने के लिए एक राष्टÑीय जन जागरण अभियान की जरूरत पड़ गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित तमाम बड़े नेताओं को कहना पड़ा कि बेटी को बचाएं। प्रधानमंत्री को यहां तक कहना पड़ा कि मैं भिक्षुक बनकर आपसे बेटियों की जिंदगी भीख मांग रहा हूं। मंथन का वक्त है कि क्या हम इतने कु्रर हो गए हैं, क्या हम इतने नीचे गिर चुके हैं कि बेटियों को होना पाप के समान मानने लगे हैं।
किसी की जिंदगी और मौत खुदा की नेमत है। इस नेमत को उसी तरह स्वीकार करना चाहिए जिस तरह हम इस धरती पर हैं। हम इस बात को क्यों नहीं समझते कि जब चाहे ऊपरवाला हमें अपने ऊपर पास बुला सकता है। जब हम अपनी मर्जी से इस धरती पर जिंदा नहीं रह सकते, तो एक बार मंथन करिए न कि हमें दूसरों की जिंदगी लेने का अधिकार किसने दे दिया। अगर किसी ने हमें भी कोख में ही मार दिया होता तो हमारा भी अस्तित्व नहीं होता। ऐसे में हम किसी बेटी को कोख में मारने का पाप कैसे कर सकते हैं। भारत के कई हिस्सों में लगातार सेक्स रेसियो में गिरवाट आ रही है। कई राज्य तो ऐसे हैं जहां यह स्थिति अलॉर्मिंग है। अब नहीं चेते तो कभी नहीं वाली स्थिति है।
मां सरस्वती को वाणी की देवी, ज्ञान की देवी के रूप में पूजा जाता है। वे इस समस्त संसार की परम चेतना हैं। शायद इसलिए ज्ञान प्राप्ति के लिए इस दिन छोटे बच्चों की पढ़ाई शुरू करवाई जाती है। उन्हें स्लेट और खल्ली पकड़ाई जाती है। आज चेतना का दिन भी है। इसी चेतना के दिन हमें भी बेटियों को बचाने का संकल्प लेना चाहिए। अब इन चर्चाओं का समय नहीं रह गया है, या यह बताने का वक्त नहीं है कि हमारी बेटियों आसमान की किन बुलंदियों की ओर अग्रसर है। न ही इस पर चर्चा होनी चाहिए। बस महसूस करने की जरूरत है। महसूस करना है बेटियों के सम्मान को। महसूस करना है उनकी मासूमियत को। जब तक दिल में बेटियों के प्रति सम्मान की भावना मजबूत नहीं होगी, वे कोख में ही दम तोड़ती रहेंगी।
चलते-चलते
बेटियों ने गर्व करने का एक और मौका पूरे देश को दिया है। भारतीय गणतंत्र के इतिहास में यह पहली बार होगा कि सशस्त्र बल की महिला टुकड़ी राजपथ पर परेड में भाग लेंगी। यह मील का पत्थर साबित होने जा रहा है। पूरे विश्व को मैसेज देने की कोशिश है कि भारतीय बेटियां युद्ध कौशल में भी उसी तरह अपना दमखम रखती हैं, जिस तरह आसमान की ऊंचाईयों में। परेड में तो सिर्फ 144 बेटियां ही शामिल होंगी, पर पूरे देश की बेटियों के लिए इससे बड़ी सम्मान की बात नहीं हो सकती।