यूं तेरा चले जाना
भारत के सफलतम कप्तानों में से एक धोनी का टेस्ट क्रिकेट से यूं चले जाने की उम्मीद कतई नहीं थी। कौन ऐसा भारतीय क्रिकेटर होगा जो उस कप्तान पर गर्व नहीं करेगा जिसने क्रिकेट के तीनों स्तर पर भारत को सफलता के सर्वोच्य शिखर तक पहुंचाया हो। और कौन ऐसा क्रिकेटर होगा जो ऐसे खिलाड़ी को शानदार विदाई नहीं देना चाहता हो। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। हमेशा से शांत रहने वाला क्रिकेटर जिस शांत तरीके से भारतीय टेस्ट टीम में पर्दापण करता है, उसी शांत तरीके से इसे अलविदा भी कह देता है। कैप्टन कूल नाम की सार्थकता शायद इसी में थी। आॅन फिल्ड जिस तरह अपने अचानक लिए गए निर्णयों से धोनी सबको हैरान कर देते थे, ठीक उसी तरह आॅफ फिल्ड भी इस तरह के निर्णयों के लिए वे जाने जाने जाते थे। अपनी जिंदगी के कई अहम फैसले धोनी बस यूं चुटकी बजाते ले लिए। धोनी की इस विदाई बेला में उस बात का जिक्र भी अहम हो जाता है, जब भारतीय टीम के कई सीनियर क्रिकेटर को एक तरह से धकिया के टीम के बाहर बिठाया गया था। अपने आलोचकों को करारा तमाचा मारते हुए धोनी ने खुद ही टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया। क्रिकेट के पंडित चाहे इसके लिए सौ कारण गिना दें, पर मेरे जैसे लाखों चाहने वालों के दिलों में धोनी ने अपना कद और भी ऊंचा कर लिया है। हां पर इतना अफसोस जरूर रहेगा कि टेस्ट क्रिकेट के मैदान से इस बेहतरनी खिलाड़ी को सम्मानजनक तरीके से विदाई लेनी चाहिए थी। क्रिकेट की शानदार परंपरा का निवर्हन जरूर करना चाहिए था। अपने साथियों को उन्हें वह मौका जरूर देना चाहिए था कि वे उन्हें अपने कंधों पर उठाकर ड्रेसिंग रूम तक पहुंचाएं। स्टेटियम में मौजूद उन हजारों दर्शकों को वह मौका देना चाहिए था कि अपनी-अपनी सीट पर खड़े होकर तालियों की गड़गड़ाहट के साथ वे इस खिलाड़ी को शानदार विदाई दें। अफसोस जरूर रहेगा धोनी कि आपने ऐसा कुछ करने नहीं दिया। पर गर्व इस बात पर रहेगा कि आपने पूरे विश्व को एक शानदार क्रिकेटर को देखने का मौका दिया।
भारत के सफलतम कप्तानों में से एक धोनी का टेस्ट क्रिकेट से यूं चले जाने की उम्मीद कतई नहीं थी। कौन ऐसा भारतीय क्रिकेटर होगा जो उस कप्तान पर गर्व नहीं करेगा जिसने क्रिकेट के तीनों स्तर पर भारत को सफलता के सर्वोच्य शिखर तक पहुंचाया हो। और कौन ऐसा क्रिकेटर होगा जो ऐसे खिलाड़ी को शानदार विदाई नहीं देना चाहता हो। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। हमेशा से शांत रहने वाला क्रिकेटर जिस शांत तरीके से भारतीय टेस्ट टीम में पर्दापण करता है, उसी शांत तरीके से इसे अलविदा भी कह देता है। कैप्टन कूल नाम की सार्थकता शायद इसी में थी। आॅन फिल्ड जिस तरह अपने अचानक लिए गए निर्णयों से धोनी सबको हैरान कर देते थे, ठीक उसी तरह आॅफ फिल्ड भी इस तरह के निर्णयों के लिए वे जाने जाने जाते थे। अपनी जिंदगी के कई अहम फैसले धोनी बस यूं चुटकी बजाते ले लिए। धोनी की इस विदाई बेला में उस बात का जिक्र भी अहम हो जाता है, जब भारतीय टीम के कई सीनियर क्रिकेटर को एक तरह से धकिया के टीम के बाहर बिठाया गया था। अपने आलोचकों को करारा तमाचा मारते हुए धोनी ने खुद ही टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया। क्रिकेट के पंडित चाहे इसके लिए सौ कारण गिना दें, पर मेरे जैसे लाखों चाहने वालों के दिलों में धोनी ने अपना कद और भी ऊंचा कर लिया है। हां पर इतना अफसोस जरूर रहेगा कि टेस्ट क्रिकेट के मैदान से इस बेहतरनी खिलाड़ी को सम्मानजनक तरीके से विदाई लेनी चाहिए थी। क्रिकेट की शानदार परंपरा का निवर्हन जरूर करना चाहिए था। अपने साथियों को उन्हें वह मौका जरूर देना चाहिए था कि वे उन्हें अपने कंधों पर उठाकर ड्रेसिंग रूम तक पहुंचाएं। स्टेटियम में मौजूद उन हजारों दर्शकों को वह मौका देना चाहिए था कि अपनी-अपनी सीट पर खड़े होकर तालियों की गड़गड़ाहट के साथ वे इस खिलाड़ी को शानदार विदाई दें। अफसोस जरूर रहेगा धोनी कि आपने ऐसा कुछ करने नहीं दिया। पर गर्व इस बात पर रहेगा कि आपने पूरे विश्व को एक शानदार क्रिकेटर को देखने का मौका दिया।