Saturday, January 31, 2009

·ल सुबह से ही ऑफिस में सेलिब्रेशन ·ा माहौल था. हो भी क्यू न. ·ल आई-नेक्स्ट देहरादून ·ी फस्र्ट एनवर्सरी थी. पूरे ऑफिस ·ो रंग बिरंगे गुब्बारों से सजा दिया गया था. शाम में ·े· ·टने ·ा इंतजार था. जैसे ही ·े· ·टी पूरी टीम ने जोरदारा तालियां बजा·र सं·ल्प लिया रिडर्स ·ी आ·ांक्षाओं पर खरा उतरने ·ी. इस सेलिब्रेशन ·े बीच ए· ऐसा शख्स भी था जो लंबे समय से इस संस्थान से जुड़ा है. अगर वह ए· दिन ऑफिस नहीं आता है तो सभी ·ुछ अस्त व्यस्त लगने लगता है. वह शख्स है मेरे ऑफिस ·ा ·ॉल ब्वॉय नवीन. आज वह भी इस सेलिब्रेशन ·ा हिस्सा था. सभी ·ो ·े· ·ोल्ड ड्रींग्स बांटने में जुटा था. अचान· मेरा ध्याान उस·ी तरफ गया तो मैंने उससे पूछा नवीन तुमने ·ुछ लिया ·ि नहीं. बड़ी मासूमियत से उसने ·हा, सर पहले सभी ·ो खिला दूं फिर खा लूंगा. उस·ी इस मासूमियत ने मुझे सोचने पर मजबूर ·र दिया. क्यों·ि इस लड़·े ·ी उम्र भी ज्यादा नहीं है. न ही उसे इस बात ·ी ·हीं ट्रेनिंग दी गई होगी. भारतीय सभ्यता ही ऐसी है ·ि वह अपने आप सभी में ग्राह्य हो जाती है. भारतीय मिट्ट्टïी ही ऐसी है ·ि यह हममें ऐसे संस्·ार भर देती है ·ि ·ोई उसे हमसे छीन नहीं स·ता.

Wednesday, January 28, 2009

celebration

·ल सुबह से ही ऑफिस में सेलिब्रेशन ·ा माहौल था. हो भी क्यू न. ·ल आई-नेक्स्ट देहरादून ·ी फस्र्ट एनवर्सरी थी. पूरे ऑफिस ·ो रंग बिरंगे गुब्बारों से सजा दिया गया था. शाम में ·े· ·टने ·ा इंतजार था. जैसे ही ·े· ·टी पूरी टीम ने जोरदारा तालियां बजा·र सं·ल्प लिया रिडर्स ·ी आ·ांक्षाओं पर खरा उतरने ·ी. इस सेलिब्रेशन ·े बीच ए· ऐसा शख्स भी था जो लंबे समय से इस संस्थान से जुड़ा है. अगर वह ए· दिन ऑफिस नहीं आता है तो सभी ·ुछ अस्त व्यस्त लगने लगता है. वह शख्स है मेरे ऑफिस ·ा ·ॉल ब्वॉय नवीन. आज वह भी इस सेलिब्रेशन ·ा हिस्सा था. सभी ·ो ·े· ·ोल्ड ड्रींग्स बांटने में जुटा था. अचान· मेरा ध्याान उस·ी तरफ गया तो मैंने उससे पूछा नवीन तुमने ·ुछ लिया ·ि नहीं. बड़ी मासूमियत से उसने ·हा, सर पहले सभी ·ो खिला दूं फिर खा लूंगा. उस·ी इस मासूमियत ने मुझे सोचने पर मजबूर ·र दिया. क्यों·ि इस लड़·े ·ी उम्र भी ज्यादा नहीं है. न ही उसे इस बात ·ी ·हीं ट्रेनिंग दी गई होगी. भारतीय सभ्यता ही ऐसी है ·ि वह अपने आप सभी में ग्राह्य हो जाती है. भारतीय मिट्ट्टïी ही ऐसी है ·ि यह हममें ऐसे संस्·ार भर देती है ·ि ·ोई उसे हमसे छीन नहीं स·ता.

Thursday, January 22, 2009

नए ज़माने का शहर है

किसी shyar ने कहा है नए ज़माने का शहर है जरा फासले से मिला करो हमारे समाज ने शायद इन पंक्तियों को इतना आत्मशत कर लिया है की उन्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने से मतलब रह गया है। अभी मैं दो दिन पहले चंडीगढ़ गया था। वहां के अख़बारों में छपी एक ख़बर ने अन्दर से झकझोर कर रख दिया। ख़बर थी दो बहनों की। एक बहन जो बचपन से ही अपाहिज थी और दूसरी बहन जिसने अपनी बहन के लिए पुरी जिन्दगी न्योछावर कर दी। तमाम परेसानियों को झेलते हुए दोनों एक दुसरे के लिए जी रही थीं। बरी बहन जो अपाहिज उसके लिए छोटी बहन ने वो सबकुछ किया जो एक परेंट्स करते हैं। अचानक एक दिन छोटी बहन घर में ही मौत के आगोश में चली गई। अपाहिज बहन बगल के ही बेड पर ही तीन दिन अपनी बहन के लाश के साथ गुमसुम परी रही। पारोसिओं ने भी कोई सुध नहीं ली की तीन दिन से बंद परे मकान में क्या कुछ हो गया। बात तब सामने आई जब लाश दुर्गन्ध मरने लगी और उसकी दुर्गन्ध ने सिटी ब्यूटी फुल के माहोल को विचलित कर दिया। पुलिस को सुचना दी गई। जब दरवाजा तोरा गया तो अन्दर की स्थिति देख सभी की ऑंखें खुली की खुली रह गईं। अपाहिज बहन की सांसें चल रही थीं। पुलिस ने उसे हॉस्पिटल पन्हुचाकर अपना कर्तव्य निभा दिया। लेकिन आज का सभ्य समाज शायद अपना कर्तव्य भूल चुका है। वह भूल चुका है की फासला इतना भी न हो की हम सबकुछ खो दें और बाद में अफ्शोश करने के अलावा कुछ न रहे.

Friday, January 16, 2009

kuch dil se

Apni marji se kahan apne safar ke hum hain

rukh hawaon ka jidhar ka hai udhar ke hum hain!!

pahle har chej the apni magar ab lagta hain

apne hi ghar me kisi dusre ghar ke hum hain!!

waqt ke sath hai mitti ka safar sadion tak

kisko maloom hai kahan ke hain kidhar ke hum hain!!

chalte rahte hain ki chalna hai MUSAFFIR ka nasib

sonchte rahte hain ki kis rahgujar ke hum hain!!

gintiyon me hi gine jate hain har daour me hum

har kalamkar ki benam khabar ds hum hain!!

::::Nida Fazli